पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बाजे बजाये और यहाँतक कि किसी मीनारपर से एक पत्थर उखाड़ लिया, तो भी मैं कहनेका साहस करता हूँ कि मुसलमानोंको मन्दिरोंको अपवित्र नहीं करना चाहिए था। बदला भी आखिर एक हदतक ही लिया जा सकता है। हिन्दू लोग अपने देवालयको जानसे अधिक मानते हैं। हिन्दुओंकी जानको नुकसान पहुँचानेकी बात तो किसी हदतक समझमें आ सकती है; पर उनके मन्दिरोंको हानि पहुँचानेकी बात समझमें नहीं आ सकती। धर्म जीवनसे बढ़कर है। इस बातको याद रखिए कि दूसरे धर्मों के साथ तात्त्विक दृष्टि से तुलना करनेमें चाहे किसीका धर्म नीचा बैठता हो, परन्तु उसे तो अपना वही धर्म सबसे सच्चा और प्रिय मालूम होता है। परन्तु जहाँतक अनुमान किया जा सकता है, हिन्दुओंकी तरफसे मुसलमानोंको उत्तेजनाका मौका ही नहीं दिया गया। मुलतानमें जब मन्दिर अपवित्र किये गये तब बिना-किसी उत्तेजनाके ही किये गये थे। हिन्दू-मुस्लिम तनावके विषयमें लिखे अपने लेखमें[१] मैंने कुछ ऐसे स्थानोंकी चर्चा की है, जहाँ हिन्दुओं द्वारा मसजिदोंके अपवित्र किये जानेकी बात कही जाती है। मैं इन आरोपोंके सम्बन्धमें सबूत एकत्र करनेकी कोशिश कर रहा हूँ। परन्तु अबतक मुझे उनका कुछ भी सबूत नहीं मिला है। अमेठी, शम्भर और गुलबर्गाकी जो खबरें प्रकाशित हुई हैं, ऐसे काम करके आप इस्लामकी कीर्तिको बढ़ाते नहीं है। अगर आप इजाजत दें तो मैं कहूँगा कि इस्लामकी इज्जतका भी मुझे उतना ही खयाल है जितना कि खुद अपने मजहबका। यह इसलिए कि मैं मुसलमानोंके साथ पूरी, खुली और दिली दोस्ती रखना चाहता हूँ। पर मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि मन्दिरोंको अपवित्र करनेकी ये घटनाएँ मेरे हृदयके टुकड़े-टुकड़े कर रही हैं।

दिल्ली के हिन्दुओं और मुसलमानोंसे मैं कहता हूँ:

यदि आप इन दो जातियोंमें मेल-मिलाप कराना चाहते हों, तो आपके लिए यह अनमोल अवसर है। अमेठी, शम्भर और गुलबर्गामें जो-कुछ हुआ है, उसे देखनेके बाद आपका यह दुहरा कर्तव्य हो जाता है कि आप इस मसलेको हल कर डालें। आपको अपने बीच हकीम अजमलखाँ साहब और डा० अंसारी-जैसे मुसलमान सज्जनोंके होनेका सौभाग्य प्राप्त है, जो अभी कलतक दोनों जातियोंके विश्वासपात्र थे। इस तरह आपकी परम्परा उच्च रही है। अपनी दलबन्दियोंको तोड़कर और ऐसी दिली दोस्ती कायम करके जो किसी तरह न टूट पाये, आप इन लड़ाई-झगड़ोंकी शुभ परिणति कर सकते हैं। मैंने तो अपनी सेवाएँ आपके हवाले कर ही दी हैं। यदि आप मुझे दोनोंका मध्यस्थ बनाना पसन्द करें तो मैं दिल्लीमें जमकर बैठने के लिए तैयार हूँ और उन दूसरे सज्जनोंके साथ, जिन्हें आप चुनें, सच्ची बातोंका पता लगानेकी कोशिश करूँ। इस सवालके स्थायी निपटारेके लिए यह आवश्यक है कि पहले हम इस बातकी पूरी तहकीकात करें कि पिछली जुलाईमें दरहकीकत क्या-क्या हुआ और वह क्योंकर हो पाया। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप शीघ्र ही इस सम्बन्धमें कोई निर्णय लीजिए। हिन्दू-मुसलमानोंका सवाल एक ऐसा सवाल है जिसके ठीकठीक हल होनेपर ही निकट भविष्यमें भारतका भाग्य निर्भर करता है। दिल्ली इस

  1. २. देखिए खण्ड २४, पृष्ठ १३९-५९।