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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कांग्रेसके प्रस्तावके अनुसार जिन सदस्योंने सूत भेजा है उनकी तादाद रजिस्टरमें दर्ज संख्याकी सिर्फ १४ फीसदी है। गैर-सदस्य सूत भेजनेवालोंकी संख्या सूत कातनेवाले सदस्योंकी ६७ फीसदी है। प्रायः हरएक प्रान्तने इस बार कम सूत भेज पानेके लिए माफी चाही है। अगले महीने में वे इससे कहीं अच्छा नतीजा दिखानेकी आशा रखते हैं। इस सूचीमें गुजरातका नम्बर सबसे पहला है। पर इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं। क्योंकि सूत कातनेकी शिक्षा देनेकी सुविधाएँ और व्यवस्था यहाँ सबसे अच्छी है। बरार सबसे फिसड्डी रहा। मैं तो आशा कर रहा था कि बरारका विश्वास चरखेपर न होनेपर भी वह कांग्रेसकी आज्ञाका पालन अवश्य करेगा और मैं उसे बधाई दूँगा। मैं बरारकी प्रान्तिक समितिसे अनुरोध करता हूँ कि वह नियमोंका पालन करे। फिर क्या बरारमें ऐसे लोग नहीं हैं, सदस्य चाहे न हों, जो चरखे के कायल हैं? गुजरातके बाद दूसरा नम्बर है बंगालका। यह बात ध्यान देने लायक है। ऐसा मालूम होता है कि वह गुजरातको हरा देगा। होना भी यही चाहिए। क्योंकि बंगाल तो उन नफीस कतैयोंकी जन्मभूमि है जिनकी टक्करके कतैये दुनियामें कहीं पैदा ही नहीं हुए। बंगालको ही ईस्ट इंडिया कम्पनीकी क्रूरताका पूरा-पूरा शिकार होना पड़ा था। ऐसी हालतमें इससे बढ़कर ठीक बात दूसरी हो ही नहीं सकती कि बंगाल भारतको सबसे अधिक सूत कातनेवाले स्वयंसेवक देकर औरोंको रास्ता दिखाये। गुजरातके बाद बंगालके दूसरे नम्बरपर होनेका रहस्य वहाँ डाक्टर राय द्वारा किया गया संगठन और व्यवस्था है। यदि नेता लोग आगे बढ़ें तो कार्यकर्ता बढ़ने के लिए तैयार हैं। मैं आशा करता हूँ कि मैं अगले सप्ताह सूतकी अच्छाई-बुराई आदिकी तफसील दे सकूँगा। फिलहाल तो इतना ही कहना काफी होगा कि यदि लोगोंके उत्साहका यही क्रम रहा तो हम बिना दिक्कत ऊँचे नम्बरका बुनने लायक सूत प्राप्त करनेकी समस्या हल कर सकेंगे। खादी-प्रचारके रास्ते में यही सबसे बड़ी बाधा रही है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-८-१९२४

३४. दो पहलू

कांग्रेसका कताई सम्बन्धी प्रस्ताव कांग्रेसियोंकी मनोवृत्तिके अध्ययनकी खासी सामग्री पेश कर रहा है। जब अ० भा० कांग्रेस कमेटीने चरखा कातनेका प्रस्ताव किया तब कहीं कांग्रेसियोंकी समझमें आया कि चरखा कातना तभी लोकप्रिय और सार्वत्रिक हो सकता है जब कमसे-कम कांग्रेसके प्रतिनिधि केवल कताई सीखना ही नहीं बल्कि रोज चरखा कातना भी अपना कर्तव्य मानें। अब वे इस बातका महत्त्व समझने लगे हैं। अबतक तो कांग्रेसके इस आशयके एक पिछले प्रस्तावके रहते हुए भी कि तमाम कांग्रेसियोंको कमसे-कम चरखा कातनेकी कला सीख लेनी चाहिए, बहुतोंने उसे छुआतक न था।