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दो पहलू

ऐसी अवस्थामें क्या आश्चर्य कि चरखा-कताई इतनी नहीं बढ़ पाई जिससे विदेशी कपड़ेका बहिष्कार सफलतापूर्वक हो सके। पर अब तो वे लोग भी कातने लगे हैं जो यह समझते थे कि हम तो कभी कात ही न सकेंगे; यही नहीं, वे उसे पसन्द भी करने लगे हैं। एक महाशयके पत्रका कुछ अंश मैं नीचे देता हूँ, जिससे यह बात और स्पष्ट हो जाती है:

कातनेका काम मैंने कुछ देरसे शुरू किया। सामग्री जुटाने में कुछ दिन और बीत गये। फिर, कुछ दिनोंतक मुझे अपने औजारोंसे झगड़ना पड़ा। इस तरह पता चला कि मैं किस किस्मका कारीगर हूँ। जब चरखेने बुद्धिके आगे सिर झुकाया, तो पूनियोंने बगावत शुरू कर दी। नालायक पूनियाँ अड़ने लगीं, धागा देनेसे इनकार करने लगीं, लेकिन दिल्लगी यह कि ये सबकी-सब एक रस्सा बनकर निकलने में जरा न सकुचाती थीं। मुझे ऐसा मालूम हुआ कि तत्त्वज्ञानकी कुर्सीपर पड़े-पड़े सूक्ष्म काल्पनिक विचार-मालाका महीन तार निकालना बड़ा आसान था। चरखेपर वास्तविक सूत कातना कहीं कठिन है। यदि मुझे यह पहलेसे मालूम होता कि नटखट महात्मा हमें आगे चलकर इस झंझटमें फँसायेंगे तो मैं १९२१ में उनकी पुकारके अनुसार कालेजकी अपनी आरामकुर्सीसे असहयोग करनेसे पहले हजार बार सोचता। उस समय मैंने यह खयाल किया था कि मैं तो एक नेताकी हैसियतसे सैकड़ों सभा-मंचोंपर जाकर चरखेपर लम्बे-लम्बे व्याख्यान झाड़ा करूँगा। यह तो मैंने ख्वाबमें भी न सोचा था कि मुझे चरखा कातना पड़ेगा। पर अब मेरा भ्रम बुरी तरह दूर हो गया। अच्छा, तो मैं इस होनहारके आगे सिर झुकाता हूँ। अब पीछे कदम हटानेका तो सवाल ही कैसे खड़ा हो सकता है? मैं अपनी मेहनतका तुच्छ फल आपकी सेवामें भेज रहा हूँ। जो शर्तें लगाई है, उनमें से एकका भी पालन नहीं हो पाया है। पर मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि मेरा दिल निराश नहीं हुआ है और अब भी मुझे आशा है कि मैं बहुत बढ़िया नतीजा दिखा सकूँगा।

मैं ऐसे और भी कितने ही उदाहरण दे सकता हूँ, जिनमें लोग जरा देर करके, पर झपाटे और दृढ़ताके साथ कताईमें जुट पड़े हैं।

पर पाठकोंको दूसरा पक्ष भी जता देना उचित है। मैं नीचे एक पत्र देता हूँ। यह एक कांग्रेस कमेटीके सभापतिका भेजा हुआ है। इस किस्मका यह एक ही खत मुझे अबतक मिला है। वे कहते हैं:

मैं अ०भा० कांग्रेस कमेटीके इस प्रस्तावको नाजायज मानता हूँ। आज कहा जाता है कि या तो चरखा कातो या इस्तीफा दो। कल कहेंगे अपना खाना खुद पकाओ या इस्तीफा दे दो या यह भी कहा जा सकता है कि अपना सिर मुड़ाओ, नहीं तो इस्तीफा दो। इस चरखेके सिद्धान्तपर मुझे विश्वास