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३५. दक्षिण भारतके बाढ़-पीड़ितोंको सहायता

दक्षिण भारतके पीड़ितोंकी ओरसे निकाली गई अपीलके प्रति लोग लगातार बहुत अच्छा उत्साह दिखा रहे हैं। प्रतिदिन नकद और कपड़े आ रहे हैं और उनका ढेर लगता जा रहा है। किन्तु सबसे अधिक सन्तोषजनक बात यह है कि गरीब लोग बड़ी तत्परतासे सहायताके लिए आगे आ रहे हैं। अछूत लोगोंने भी आगे बढ़कर उदारतापूर्वक सहायता दी है। मेरे सामने एक हृदयस्पर्शी पत्र पड़ा हुआ है। इसमें एक पूरे परिवारने विशेष रूपसे आत्म-त्याग करके बचाया हआ धन भेजा है। प्रोपराइटरी हाईस्कूल के अध्यापकों तथा छात्रोंने ७२० रुपये भेजे हैं। महाविद्यालयने ५०० रुपये इकठे किये हैं, जिसमें से उन्होंने वस्त्रहीन लोगोंके लिए २०० रुपयेका खद्दर खरीदा है। मुझे विश्वास है कि इस प्रकारके दानके बारेमें जानकारी प्राप्त करके हमारे पीड़ित देशभाइयोंको सच्ची सान्त्वना प्राप्त होगी। मुझे आशा है, कार्यकर्ता इस बातको याद रखेंगे कि प्रकृतिने मुसलमान और हिन्दू, ईसाई और यहूदी किसीके बीच कोई भेद नहीं किया है, इसलिए वे भी अपने-अपने संगठनोंके जरिये सहायता भेजते समय इस प्रकारका कोई भेद-भाव नहीं बरतेंगे। किन्तु यदि वे सहायताको अपने ही सम्प्रदायतक सीमित रखेंगे तो यह असह्य होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-८-१९२४

३६. भाषण: बम्बई-निगमके अभिनन्दनके उत्तरमें

२९ अगस्त, १९२४

निगमके अध्यक्ष महोदय, सदस्यगण, भाइयो और बहनो,

मैं आप लोगों के सम्मुख पहले अपनी मातृभाषामें बोला। मैं इसके लिए माफी माँगनेकी जरूरत नहीं समझता। परन्तु बम्बई विभिन्न लोगोंका निवास स्थान है, इसलिए मुझे अपने उत्तरका आशय अंग्रेजीमें भी बताना चाहिए।

इस अभिनन्दन-पत्र[१] और इसमें प्रकट किये गये भावोंके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। आपने मेरी मानव-जातिके प्रति की गई सेवाओंका विशेष रूपसे उल्लेख किया है। मेरे लिए मानव या प्राणिमात्रकी सेवा धर्म बन गई है और मैं इस धर्म और राजनीतिमें अन्तर नहीं करता। मैं अवश्य ही राजनीतिसे सर्वथा पृथक्, पूर्ण सेवाके जीवनकी कल्पना नहीं कर सकता। मैं अपने प्रयोगोंसे यह साबित करनेका

  1. १. यह सर कावसजी जहाँगीर भवनमें गांधीजीके रोगमुक्त होनेपर सन्तोष प्रकट करनेके लिए बुलाई गई सभामें दिया गया था और इसमें उनकी अमूल्य सेवाओंका उल्लेख था।