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भाषण : कलकत्ताकी सार्वजनिक सभामें

जब मैं थोड़े समयके लिए दक्षिण आफ्रिकासे यहाँ आया था, तब मुझे सर सुरेन्द्रनाथसे मिलने और उन्हें नमस्कार करने का सौभाग्य मिला था। उनकी अद्वितीय वाग्मिताको चर्चा में इससे बहुत पहले सुन चुका था। सन् १८९६ में जब मैंने उनको देखा उस समय में नौजवान ही था और उनको महानताको ठीकसे अनुभव नहीं कर पाया था। सन् १९०१ में मुझे उनसे फिर मिलनका मौका मिला। और अगर यह मेरी धृष्टता न समझी जाये तो मैं कहूँगा कि उस समय मैंने उन्हें बहुत करीबसे देखा-परखा। मैंने उन्हें विषय समितिको बैठकमें देखा; मैंने उन्हें भारी जनसमुदायको अपनी वक्तृतासे मुग्ध करते देखा। उन दिनों वे जहाँ भी जाते थे, भीड़ उमड़ पड़ती थी। मैंने देखा कि तब हर सभामें, चाहे वह सार्वजनिक सभा हो या विशिष्ट लोगोंकी बैठक, उनकी उपस्थिति कितनी अनिवार्य मानी जाती थी। उनकी आवश्यकता हर राष्ट्रीय गोष्ठीमें होती थी और देशभाइयोंके भीतर जोश भरने के लिए उन्हींको याद किया जाता था। एक बार जब मैं दक्षिण आफ्रिकामें राष्ट्रीय कांग्रेसके एक अधिवेशनकी कार्यवाही पढ़ रहा था तो एक स्थलपर मुझे ऐसा विवरण मिला कि सर सुरेन्द्रनाथने उठकर ज्यों ही श्रोताओंसे पैसा देने के लिए अपील की त्यों ही औरतें उनकी गोदमें और मेजपर गहने उतार-उतारकर फेंकने लगी, धनपति उनकी मेजपर नोट फेंकने लगे और बहुतसे लोगोंने रकमें देनेके वादे किये। मतलब यह है कि जब कभी पैसेकी जरूरत पड़ती थी, लोग सर सुरेन्द्रनाथको अवश्य याद करते थे। (हर्षध्वनि)। इस तरह मैंने उन्हें जब भी देखा, मैं इस बातका अनुभव किये बिना न रहा कि वे बंगालके लिए और भारतके लिए क्या थे और कितना महत्त्व रखते थे।

तो हमें, इस नई पीढ़ीके लोगोंको, पुराने राष्ट्रनायकोंकी सेवाको भूलना नहीं चाहिए। जब उन्होंने देशकी ऐसी सेवा की तब हममें से बहुत-से लोगोंका जन्म भी नहीं हुआ था। ऐसे यशस्वी लोगोंके दृष्टिकोणसे अगर हम सहमत न भी हों तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर उन्होंने नींव नहीं डाली होती तो हम लोग यह निर्माण नहीं खड़ा कर पाते; अगर उन्होंने नींव नहीं डाली होती तो हम लोग आज जो-कुछ कर रहे हैं, वह नहीं कर पाते (हर्षध्वनि)। उन्होंने उस समय एक उदाहरण प्रस्तुत किया, जब दूसरे लोग सामने नहीं आ रहे थे। उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत किया साहसका, उदाहरण प्रस्तुत किया बलिदानका, उदाहरण प्रस्तुत किया कूटनीतिका—लेकिन यह कूटनीति आजकलकी घटिया दरजेवाली कूटनीति नहीं थी। (हर्षध्वनि)। मेरा मतलब है कि उनकी कूटनीति ऐसी थी जिसकी जरूरत हर राष्ट्रको, हर व्यक्तिको है। हम उनकी उन दिनोंकी सेवाका स्मरण करें और सर सुरेन्द्रनाथ-जैसे व्यक्तियोंके महान् कार्योंको अपनी स्मृतिमें संजोकर रखें। लोग उनकी प्रशंसा करते हुए उन्हें "सरेंडर नॉट" (कभी न झुकनेवाला) कहा करते थे। और क्या यह उपाधि बिलकुल सही नहीं है? बंगभंगके उन अन्धकारपूर्ण, किन्तु साथ ही बलिदानकी शिखासे उज्ज्वल दिनोंमें क्या उन्होंने वास्तवमें ऐसे काम नहीं कर दिखाये थे, जिससे उन्हें इस उपाधिका सुयोग्य पात्र माना जाये? क्या उन्होंने बंगाल और भारतकी सहायतासे एक ऐसी