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मजदूरोंकी दुर्दशा

बंगालके नौजवान अपनी उन निरीह और अबला बहनोंको याद रखें। मुझे बंगालके हर कोनेसे उनके दुर्भाग्यकी कहानियाँ सुननेको मिलती है। और यह दुर्भाग्य सिर्फ बंगालमें ही नहीं, बल्कि सारे हिन्दुस्तानमें समान रूपसे देखनेको मिलता है। अभी पिछली ही रात मेरे सामने ऐसा मामला आया है। मैं उसकी चर्चा करके आपका ज्यादा समय नहीं लेना चाहता। इसका उल्लेख मैं सिर्फ इसलिए कर रहा हूँ कि बंगालके नौजवान यह समझें कि हमें क्या करना है।

इस देशकी राजनीतिक स्वतन्त्रताके लिए हमें जीवनके हर क्षेत्रमें काम करना होगा, उसे सुधारना होगा। आप राजनीतिक स्वतन्त्रता मिलनेतक सामाजिक बुराइयोंको दूर करनेका इन्तजार नहीं कर सकते। अगर हमारे बीच छोटी-छोटी बालिकाएँ इसी तरह विवाह बन्धनमें बँधकर मातृत्व-पद प्राप्त करती रहेंगी तो हमारी जाति बौनोंकी जाति बन जायेगी। फिर इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है कि हम अपनी भलाई-बुराईके सम्बन्धमें स्पष्टतापूर्वक नहीं सोच पाते; और लॉर्ड विलिंग्डनके शब्दों में जहाँ हमें "हाँ" कहना चाहिए वहाँ हम "हाँ" नहीं कहते और जहाँ "ना" कहना चाहिए वहाँ "ना" नहीं कह पाते। बहुत-से अंग्रेजोंने मुझसे पूछा है, "वह दिन कब आयेगा जब आप सचमुच 'हाँ' कहना चाहते हों तभी 'हाँ' कहना और जब 'ना' कहना चाहते हों तो स्पष्टतापूर्वक 'ना' कहना सीखेंगे। भले ही उसके लिए कितना ही कठिन परिणाम भोगना पड़े!

इसलिए हमें राष्ट्रीय जीवनके हर क्षेत्रमें काम करने और उसे सुधारनेकी कोशिश करनी चाहिए। यही सर सुरेन्द्रनाथको अर्पित की गई पर्याप्त स्मरणांजलि होगी (हर्षध्वनि)।

[अंग्रेजीसे]
फॉरवर्ड, १६–८–१९२५

३८. मजदूरोंको दुर्दशा

एक सज्जनने अपने नाम और पतेके साथ मुझे निम्नलिखित पत्र भेजा है :[१]

इस पत्रमें किसी प्रकारकी अतिशयोक्ति नहीं प्रतीत होती। जिनको मजदूरोंकी दशाका तनिक भी अनुभव है, वे इस बातको जानते हैं। मजदूरोंकी स्थितिमें चाहे जितना सुधार हो जाये, इस सम्बन्धमें कोई अधिक परिवर्तन होनेकी सम्भावना मुझे दिखाई नहीं देती। प्रश्न मजदूरोंकी शिक्षाका है। जिन मजदूरोंकी बात लेखकने अपने पत्रमें की है, वे कारखानोंमें काम करनेवाले मजदूर नहीं है। ये दूसरे ही किस्मके मजदूर हैं। यह बात तो उन मजदूरोंकी है, जो मकान आदि चिननेका काम करते हैं। जबतक दुनिया रहेगी; ये मजदूर भी रहेंगे ही। उनकी रक्षा तो उनकी शिक्षामें

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र लेखक एक मजदूर था। उसने पत्थर में उनका काम देखने वाले ओवर सिथरोंकी रिश्वत लेनेकी और मजदूर स्त्रियोंके साथ उनके अभद्र व्यवहार करनेकी शिकायत की थी।