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४४. भाषण : रोटरी क्लबके सदस्योंकी बैठकमें[१]

कलकत्ता
१८ अगस्त, १९२५

श्री गांधीने कहा कि मेरी सुविधाका खयाल करके यहाँ आपने इस भोजमें सिर्फ आलू और गोभी, यानी बंगाली विधवाओंका आहार परोसा है और फिर मुझे एक ऐसे विषयपर बोलने के लिए आमन्त्रित किया है, जो शायद उतना ही नीरस है जितनी कि हमारे सामने परोसी गई यह भोज्य-सामग्री। आपके इस सौजन्यके लिए मैं आप लोगोंको धन्यवाद देता हूँ। धन्यवाद ज्ञापन के बाद अपना भाषण आरम्भ करते हुए उन्होंने कहा :

चरखा कोई आकर्षक शब्द नहीं है, यद्यपि में देखता हूँ कि आपकी पत्रिकाका नाम चरखा ही है। मैं नहीं जानता था कि अपनी पत्रिकाके नामकरणमें यहाँ आपने एक भारतीय शब्दको ही अपनाया है। इसका मतलब है चक्र; और आप जानते हैं कि चक्र एक शक्तिशाली वस्तु है। आज मैं आपको इस चक्र या चरखे अथवा तकलीकी, जिसे कि मैं अपने हाथमें लिये हुए हूँ, (दिखाते हुए) शक्ति समझानेके लिए ही यहाँ आया हूँ। मैंने मजाकके तौरपर अकसर अपने मिल-मालिक मित्रोंसे कहा है कि मेरा इरादा तो इसी तकलीके बलपर आपसे होड़ करनेका है। लेकिन परिहाससे परे इस बातकी अपनी गम्भीरता भी है।

सबसे पहले तो इसके आर्थिक महत्त्वको लीजिए। आप तो जानते ही हैं कि यह भारत देश उत्तरसे दक्षिण १९०० मीलकी लम्बाईमें और पूर्वसे पश्चिम १५०० मोलकी चौड़ाईमें फैला हुआ है और इस विस्तृत क्षेत्रमें ७,००,००० गाँव हैं। इनमें से अधिकांशमें अभी रेल नहीं पहुँच पाई है। एक समय ऐसा था जब चरखा इस भारी कृषक आबादीका पूरक धन्धा था। जैसा कि सरकारी आंकड़ोंसे ज्ञात होता है, आज भारतके ८५ प्रतिशत लोग किसान ही हैं। सरकारी आँकड़ोंसे हमें यह भी मालूम होता है कि भारतकी आबादीके इन ८५ प्रतिशत लोगोंके पास वर्षमें चार महीने बिलकुल ही रोजगार नहीं होता। कुछ जानकार लोगोंने मुझे बताया है कि बंगालमें ऐसे लोग भी हैं जिनके पास वर्षमें छः महीने कोई काम नहीं होता। आप आसानीसे कल्पना कर सकते हैं कि जो आदमी हर साल चार या छः महीनेका वेतन-रहित अवकाश ले, उसकी क्या हालत होगी। ऐसी छुट्टी तो भारतके वाइसराय भी नहीं ले सकते। मेरा खयाल है कि व्यवसायी लोग भी, भले ही वे करोड़पति हों, इतनी छुट्टी नहीं ले सकते और इतने दिनोंतक अपना व्यापार किये बिना नहीं रह सकते। भारतकी इस विशाल कृषक आबादीके लिए तो, जिनके बारेमें ३० साल पहले इतिहासकार विलियम हंटरने लिखा था कि वे तो 'रोज कुँआ खोदो और रोज पानी पिओ'

  1. रोटरी क्लबकी यह बैठक ग्रैंड होटल में हुई थी; मुख्य अतिथि और वक्ता गांधीजी थे।