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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


स्वस्थ उद्योग ऐसी होड़में नहीं टिक सकता। आप ऐसी अनैतिक स्पर्धाके खिलाफ दुनिया-भरमें जनमत तैयार करें। मैं न्यायोचित स्पर्धा चाहता हूँ, पक्षपात नहीं।

[अंग्रेजीसे]
इंग्लिशमैन, १९–८–१९२५
 

४५. पत्र : मणिबहन पटेलको

बुधवार, श्रावण बदी १५, १९ अगस्त, १९२५

चि॰ मणि,

तुम्हारा पत्र मिला। मैं नहीं चाहता कि तुम चूड़ियोंके बिना रहो। मेरी सलाह तो चाँदीकी चूड़ियाँ पहननेकी ही है। केवल सीसमकी तो ठीक नहीं लगतीं। शंखकी पहनने में कोई हर्ज नहीं है। मैं तो समझ गया हूँ कि यह सस्ती चीज नहीं है। डाह्याभाईके बारेमें जवाब लिख चुका हूँ। सब-कुछ देखते हए मेरी नजर तिब्बिया कालेजपर ही ठहरती है। परन्तु अब तो मैं वहाँ ५ सितम्बरको पहुँचनेकी आशा रखता हूँ। अतः मिलनेपर ही निश्चय करेंगे।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो—४ : मणिबहेन पटेलने
 

४६. पत्र : नारणदास गांधीको

श्रावण बदी १५ [१९ अगस्त, १९२५][१]

चि॰ नारणदास,

तुम्हारे पत्र मिल गये है, लेकिन उनमें कोई खास जवाब देने लायक बात न होनेसे मैने अबतक नहीं लिखा।

मुझे समय ही नहीं मिलता, और फिर बायें हाथसे लिखने में दुगुना समय तो लग ही जाता है। मैं ५ सितम्बरको आश्रम पहुँचूंगा और ९ को वहाँसे चल दूँगा। इस बीच तुम मुझसे मिल लेना।

बापूके आशीर्वाद

श्री नारणदास खुशालचन्द गांधी
मिडल स्कूलके सामने, नवापरा
गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६१९८) से।
सौजन्य : नारणदास गांधी
  1. डाककी मुहर से।