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४७. पत्र : बनारसीदास चतुर्वेदीको

श्रावण कृष्ण १५, [१९ अगस्त, १९२५][१]

भाई बनारसीदासजी,

मैंने भाषापरसे रोषका अनुमान कीया था। न था तो मुझे कुछ कहनेका रहता नहिं है। स्वास्थ्य अच्छा रहता होगा।

मोहनदास गांधी

[पुनश्च :]

दक्षिण भुजामें दुःख होनेके कारण यह उत्तर से लीखा गया है।

पंडीत बनारसीदास चतुर्वेदी
फीरोजाबाद
डिस्ट्रिक्ट आगरा

मूल पत्र (जी॰ एन॰ २५५७) से।

 

४८. पूर्ण समर्पण ही क्यों नहीं?

मैं नीचे जो पत्र दे रहा हूँ, वह मुझे इस ढंगके मिलनेवाले बहुतसे पत्रोंमें से एक नमूना ही है। इस पत्रपर अनेक "अपरिवर्तनवादियों" के हस्ताक्षर हैं।

कांग्रेसको मुख्य रूपसे एक राजनीतिक संस्था बनानेके खयालसे आपने इसे पूर्णतः स्वराज्यवादियोंके हवाले कर देनेका जो वचन दिया है, उससे लगभग सभी "अपरिवर्तनवादियों" के मनपर आघात पहुँचा होगा। पहले तो यही बतानकी कृपा कीजिए कि राजनीतिक कार्यक्रम है क्या? क्या जिस असहयोग कार्यक्रमको आपने पिछले साल स्थगित कर दिया वह राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था? आज लॉर्ड बर्कनहेडके भाषणसे जो स्थिति उत्पन्न हो गई है, उसका सामना करने के लिए आप उसे अगर जरूरत हो तो दूसरे रूपमें ही सही फिरसे शुरू क्यों नहीं करते? आपने पिछले साल स्वराज्यवादियोंसे एक समझौता किया था। क्या उन्होंने बेलगाँवमें किये गये वादेके अनुसार उसका ईमानदारीसे पालन किया? उनके मार्गमें आखिर कौनसी बाधा थी? आप जानते हैं कि यह समझौता अधिकांश 'अपरिवर्तनवादियों' को पसन्द नहीं था, फिर भी उन्होंने आपको खातिर उसे मंजूर कर लिया। उनसे सलाह-मशविरा किये बिना
  1. डाककी मुहरसे।