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पूर्ण समर्पण ही क्यों नहीं?

विचारको, अगर यह नया है तो, धीरे-धीरे और स्वाभाविक रीतिसे ही ग्रहण करेंगे। जिनका विश्वास असहयोगके उस विशेष तरीकेसे उठ गया है, जो १९२० में अपनाया गया था, असहयोगको दोबारा आजमाने या कोई नया रास्ता ढूँढनका काम उनका नहीं है। शंकालु लोग असहयोगके उस रूपकी ओर पुनः उन्मुख हों; इसके लिए उसकी वर्तमान उपयोगिताको दिखाने का काम तो मुझे-जैसे उन लोगोंका है, जो अब भी उसमें विश्वास रखते है। लेकिन, मैं यह बात अवश्य स्वीकार करूँगा कि जो लोग असहयोगकी ओर अपने आन्तरिक विश्वासके कारण नहीं, बल्कि इस वजहसे आये थे कि इसमें गुलामीसे तत्काल छुटकारा दिलाने की उम्मीदका लोभ दिखाई देता था, उनके सामने 'मैं कोई चमक-दमकवाला कार्यक्रम रखने में असमर्थ हूँ।' असहयोगसे जिस तरह आजादी प्राप्त हो जानेकी आशा की जाती थी, उस तरह वह सफल नहीं हई, इसलिए अब अगर वे मुल कार्यक्रममें जैसे परिवर्तनोंकी गुंजाइश है, वैसे परिवर्तनोंके साथ, पूनः उसी कार्यक्रमका सहारा लेते हैं तो उन्हें कौन दोष दे सकता है? मझ जैसे स्वप्नदर्शी लोग चरखे-जैसे एक "निर्दोष खिलौने" से एक बहत ही गहन और प्रभावकारी कार्यक्रम विकसित कर लेने की आशा भले कर रहे हैं, लेकिन जिन लोगोंने पुराने ढंगका सक्रिय राजनीतिक जीवन जिया है, उनसे आखिरकार यह आशा तो नहीं की जा सकती कि वे तबतक हाथपर-हाथ घरे बैठे रहेंगे। कांग्रेसको जन्म उन्होंने दिया था, और अब कांग्रेसको विशुद्ध रूपसे कताई-संस्था बनानेके. लिए मुझे तबतक प्रतीक्षा करनी ही होगी जबतक कि उनकी राय भी इसके पक्षमें नहीं हो जाती।

महाराष्ट्र दल क्या करेगा और क्या नहीं, मैं नहीं जानता। बेशक उसे या किसी भी व्यक्तिको यह अधिकार है कि वह वैकल्पिक मताधिकारके रूपमें कताईकी शर्त अथवा अनिवार्य खादी पहननेको मताधिकारकी एक शर्तके रूपमें स्थान देनेका विरोध करे। और उसी तरह दूसरोंको भी उतना ही अधिकार है कि वे कताई और खादीकी शर्तको कायम रखनेपर आग्रह करें। अगर हम अन्तमें लगभग किसी सर्वसम्मत निष्कर्षपर नहीं पहुँचते तो कानपुर अधिवेशनसे पहले तो कोई परिवर्तन सम्भव नहीं है। हम चाहें तो दोष-दर्शनकी अपनी आदतके कारण लोगोंके मतोंकी आलोचना कर सकते है। लेकिन यह असहिष्णुताकी निशानी होगी। हर व्यक्तिको अपने कार्यक्रममें विश्वास होना चाहिए और जरूरत पड़नेपर अकेले भी उसपर अमल करनेको तैयार रहना चाहिए।

अपने अनुभवोंसे तो मैंने यही सीखा है कि इस देशमें कताई और कौंसिलप्रवेश, दोनों कार्यक्रमोंके लिए गुंजाइश है। इसलिए कौंसिल-प्रवेशके सम्बन्धमें अपने निजी विचारोंको सैद्धान्तिक रूपसे कायम रखते हुए मुझे कौंसिलमें जानेवाले उन लोगोंका समर्थन अवश्य करना चाहिए, जो मेरे आदर्शोके लिए ज्यादा अच्छा काम कर सकते हैं, जिनमें प्रतिरोधकी अधिक शक्ति है और जिनका चरखे और खादीमें अधिक विश्वास है। और आम तौरपर स्वराज्यवादी लोग ऐसे ही हैं।

अवश्य ही, नई योजनाके अन्तर्गत चरखा संघकी स्थापना अनिवार्य है। लेकिन, जबतक कांग्रेस उसे संरक्षण देती रहे तबतक उसे उसके संरक्षणमें ही रहना चाहिए।