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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कांग्रेसके लिए मेरे मनमें बहुत स्थान है और उससे अलग होकर मैं काम करना नहीं चाहता। यही एक संस्था है जो अच्छे-बुरे सभी वक्तोंसे सफलतापूर्वक गुजर चुकी है। यह शिक्षित भारतीयोंके वर्षोंके श्रमका फल है। मैं जानबूझकर ऐसा कुछ नहीं करूँगा जिससे इसकी उपयोगिता कम हो।

अन्तमें मैं कहूँगा कि कोई भी किसी बातके सम्बन्धमें ऐसा न माने कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तो अमुक निश्चय ही करेगी। हर सदस्यका कर्तव्य है कि वह उसकी बैठकमें शामिल हो, वहाँ खुला दिमाग लेकर जाये, यह संकल्प लेकर जाये कि वह निर्भीक होकर और देशके बड़ेसे-बड़े हितको ध्यानमें रखते हुए अपनी स्वतन्त्र निर्णय बुद्धिका प्रयोग करे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २०–८–१९२५

४९. सार्वजनिक निधियाँ

मेरे कुछ ऐसे आलोचक है जिन्हें मेरी हर बात, हर काममें केवल गलतियाँ ही दिखाई देती हैं। उनकी आलोचनासे कभी-कभी मुझे लाभ भी होता है। लेकिन सौभाग्यवश मेरे कुछ ऐसे मित्र भी है, जो मेरे गुणोंके संरक्षक कहे जा सकते है। वे बराबर यही चाहते है कि मैं सर्वथा दोषरहित पूर्ण व्यक्ति बनूँ; और इसलिए जब-कभी उन्हें ऐसा लगता है कि मुझसे भूल हुई है या मेरे अमुक बात कहने अथवा अमुक काम करनेसे भूल होने की सम्भावना है तो वे विचलित हो उठते हैं। एक ऐसे ही शुभाकांक्षी मित्रने, जिनकी चेतावनियाँ पहले भी मेरे लिए बहुत मूल्यवान साबित हुई हैं, निम्न आशयका पत्र लिखा है :

मैंने देखा है कि बहुत-सी निधियाँ एकत्र करने में आपका हाथ रहा है—जैसे जलियानँवाला कोष, सत्याग्रह कोष, स्वदेशी कोष, स्वराज्य निधि, और अब आप देशबन्धु स्मारक कोषके कामसे बंगालमें जा बैठे हैं। क्या आपको भरोसा है कि उन पिछले कोषोंकी व्यवस्था ठीक-ठीक की गई है, और देशबन्धु स्मारक कोषको व्यवस्था भी ठीक-ठीक की जायेगी? जनताके प्रति आपका कर्तव्य है कि आप इसका पूरा स्पष्टीकरण करें।

पत्र-लेखक भाई इस सूचीमें तिलक स्वराज्य कोष और दक्षिणमें बाढ़-पीड़ित सहायता कोष भी जोड़ सकते थे

सवाल सर्वथा उचित है। देशबन्धु स्मारकके लिए चन्दा इकट्ठा करने के दौरान भी कुछ ऐसे लोगोंने, जिन्होंने काफी मोटी रकम दी है, मुझे सावधान किया है। मेरा सामान्य नियम तो यह है कि जबतक वे मुझे किसी कोषके बारेमें यह मालूम नहीं हो जाता कि उसकी व्यवस्था कौन लोग करने जा रहे हैं और जबतक मुझे उनकी ईमानदारीका पूरा यकीन नहीं हो जाता तबतक मैं उसके साथ कोई सम्बन्ध