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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसलिए तुम्हारे पत्रकी तरह जो भी अन्य पत्र मेरे पास पड़े हुए हैं, उन सबको आज निबटाये दे रहा हूँ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ३७२५) की फोटो-नकलसे।

 

५४. पत्र : कल्याणजी मेहताको

[२० अगस्त, १९२५][१]

भाई कल्याणजी,

महादेवको लिखा तुम्हारा पत्र मैंने पढ़ लिया है। पार्वतीके मनमें यदि प्रागजीसे मिलनेकी इच्छा हुई तो वह वहाँ हो आये। प्रागजी कात तो रहे हैं? तुम सूरत छोड़कर बारडोलीमें रहो, यह बात मुझे तो पसन्द है। तुम पाठशाला शौकसे खोलो यदि वह तुम्हारी शर्तोंपर खुल सके तो उसे जरूरी समझो। 'नवयुग' के लिए यह सन्देश है :

गुजरातियोंको मैं क्या सन्देश भेजूँ? पहले गुजरात चरखा चलाकर, खादी पहनकर विदेशी कपड़ोंका त्याग करे और तब मुझसे पूछे कि अब हम क्या करें। जब पहले-पहल रेलवे लाइन बिछाई जाने लगी तब रास्तेमें एक जगह गहरी खाई आ जानेके कारण रुकावट आ गई। उसे भरनेपर ही लाइन बिछाई जा सकती थी। इंजीनियरने कहा—"खाई भरो", लेकिन वह भरती ही नहीं थी। खाई भरनेवाले थक गये और बोले "अब क्या करें?" "खाई भरो" जवाब मिला, वे लोग फिर भरने लगे, लेकिन वह फिर भी भरती नहीं दिखी। उन्होंने फिर पूछा "अब?" जवाब मिला, "खाई भरो"। फलतः उन्होंने फिर टोकरियोंमें मिट्टी भर-भरकर खाईमें फेंकी। अन्तमें खाई भर गई। स्टीवेन्स अमर हो गया। मुझे भी अमर होना है, इसीसे एक ही बात कहता हूँ, "कातो और खादी पहनो।"

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २६७७) की फोटो-नकलसे।

  1. डाककी मुहरसे।