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५५. भेंट : ‘इंग्लिशमैन' के प्रतिनिधिसे

२१ अगस्त, १९२५ श्री गांधी शुक्रवारको कटकसे कलकत्ता लौटे। वहाँ डॉ॰ अब्दुल्ला सुहरावर्दीके स्वराज्यदलसे इस्तीफा दे देनेके सम्बन्धमें 'इंग्लिशमैन' के एक प्रतिनिधिने उनसे भेंट की। यह पूछनेपर कि क्या वे सुहरावर्दोके त्यागपत्रके सम्बन्धमें जनताको कुछ बतायेंगे, श्री गांधीने कहा :

मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि इस इस्तीफेपर मुझे आश्चर्य है। स्पष्ट ही श्री सुहरावर्दीकी सारी शिकायत मेरे खिलाफ है, लेकिन मैं तो स्वराज्य दलका सदस्य नहीं हूँ। मैंने उस सभामें, जिसमें मुझे आमन्त्रित किया गया था जो विचार व्यक्त किया, उसके लिए वे जितनी चाहें नाराजगी जाहिर करें, पर वह तो मेरा व्यक्तिगत विचार था।

जहाँतक मेरा सवाल है, मेरी अब भी यही राय है कि जो चुनाव दलीय आधारपर लड़ा जाना था और जिसमें डा॰ सुहरावर्दी दलके उम्मीदवारके रूपमें खड़े थे, उनका उस चुनावसे ठीक पहले गवर्नर महोदयसे भेंट करना गलत था। वही क्यों, स्वराज्य दलका कोई भी सदस्य ऐसा करता तो वह गलत होता।

मैं नहीं समझता कि उस सभामें किसीने भी किसी सदस्यके गवर्नर महोदयसे या किसी भी अन्य विरोधी राजनीतिज्ञोंसे घनिष्ठसे-घनिष्ठ सामाजिक सम्बन्ध रखने के अधिकारपर आपत्ति की थी, लेकिन अगर मान्य डाक्टर साहबकी मुलाकात सामाजिक ढंगकी थी तो उसके लिए चुना गया समय अनुपयुक्त और दुर्भाग्यपूर्ण था। हम एक ऐसी नौकरशाहीसे लड़ रहे है जो बहत ही साधन-सम्पन्न और कहँगा कि सिद्धान्तहीन है।

मुझे ऐसे बहुतसे मामलोंकी जानकारी है, जब सरकारी अधिकारियोंने लोगोंको प्रलोभन और धमकियाँ देकर और कई दूसरे किस्मके दबाव डालकर ऐसे काम करने के लिए प्ररित किया है जिनके बारेमें उन्हें यह ज्ञान था कि उनका वसा करना देशहितके विरुद्ध होगा।

इसलिए मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि स्वराज्य दलके सदस्योंको दलकी अनुमतिके बिना सरकारी अधिकारियोंसे न मिलने देनेका नियम एक ठीक नियम है। तथाकथित सामाजिक समारोहोंमें बहुत-सी बातें होती रही हैं। लेकिन जैसा कि मैंने कहा, यह मेरा व्यक्तिगत विचार है; स्वराज्य दल इसे मान भी सकता है, नहीं भी मान सकता है।

यदि डॉ॰ सुहरावर्दी समझें कि अब बहुत देर हो गई है तो मैं उन्हें सुझाव दूंगा कि वे मेरे ही खिलाफ नाराजगी जाहिर करके शान्त हो जायें और जिस पार्टीके प्रति उन्होंने अपनेको वफादार बताया है, उसमें बने रहें। देशबन्धुकी मृत्युके बाद