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६०. पत्र : नानाभाई इच्छाराम मशरूवालाको

१४८, रसा रोड
कलकत्ता
भाद्रपद सुदी ४ [२३ अगस्त, १९२५][१]

भाईश्री ५ नानाभाई,

आपका पत्र मिल गया है। फुर्सत मिलनेपर अवश्य आ जाऊँगा। सारा देश कुछ करे या न करे, हमें तो अपना काम करते ही जाना है, यह दूसरोंको समझानेका सबसे आसान रास्ता है। अमरावतीके वकीलोंका किस्सा हमारी दुर्बलताकी कहानी है।

मैं समय मिलते ही जरूर आ जाऊँगा, लेकिन फिलहाल तो घड़ी-भरकी भी फुर्सत नहीं देखता; सो निरुपाय हूँ। कई जगहोंसे आनेकी माँगें आती रहती हैं, लेकिन कहीं भी जा नहीं पाता

वहाँकी परिस्थितियोंसे मुझे अवगत करते रहना।

मोहनदासके वन्देमातरम्

माना गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ११७० ए) से।
सौजन्य : सुशीला बह्न गांधी

 

६१. पत्र : सुधीर रुद्रको

१४८, रसा रोड
कलकत्ता
२५ अगस्त, १९२५

प्रिय सुधीर,

मेरा बायाँ हाथ काम नहीं कर रहा है, इसलिए यह छोटा-सा पत्र में बोलकर लिखा रहा हूँ। चार्ली एन्ड्रयूजने मुझे बताया है कि तुम अपनी मनःस्थितिपर काबू नहीं रख पाते और तुम कभी-कभी दुःखी हो उठते हो। यह सुशील रुद्रके पुत्र नहीं है। अगर तुम्हारे पिताजी अब शारीरिक रूपसे हमारे बीच नहीं है तो क्या आत्मिक रूपसे भी हमारे बीच नहीं है? बल्कि शायद वे पहलेसे अधिक ही हमारे बीचमें है। अब हम सब उनके सर्वोत्तम गुणोंको अपने जीवनमें उतारकर दिखायें; फिर उनके शरीरके नाश होनेपर दुःखी होनेका कोई कारण ही नहीं रह जायेगा।

सस्नेह,

तुम्हारा<be> मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६०९४) से।
सौजन्य : श्रीमती राजमोहिनी रुद्र
  1. गांधीजी इसी वर्ष १४८, रसा रोड़ कलकता में ठहरे थे।