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भेंट : भारतीय मनोविश्लेषण संस्थाके सदस्योंसे

का साहस दिखाये; वह खुद ही देखेगा कि उसके इस चरित्रका वहाँके लोगोंपर कैसा अनुकूल प्रभाव पड़ता है। लेकिन उसे धैर्य और सत्यसे काम लेना होगा। जहाँ धैर्य और सत्य तथा विनम्रता और सज्जनता नहीं हैं, वहाँ चारित्र्य नहीं है। वह गाँवोंमें उपदेशक और संरक्षक बनकर न जाय। उसे तो विनयके साथ हाथमें झाड़ लेकर भंगीकी तरह जाना होगा। यह जो गन्दगी, गरीबी और बेकारीकी त्रिमूर्ति है, उसे उसका सामना करना होगा और उसके साथ झाड़, कुनैन, एरण्ड तेल और अगर आपको मेरी बातमें विश्वास हो तो चरखेरूपी हथियारसे लड़ना होगा। लेकिन चारित्र्यके बिना ये सब आपके किसी काममें नहीं आयेंगे। आपको अहंकार छोड़कर नीचे झुकना होगा, तभी आप उनके हृदय जीत सकेंगे। आपको खुद मलेरियाका शिकार होनेका खतरा उठाना पड़ेगा। यह काम आपकी आत्माको जैसा चाहिए वैसा पूरा-पूरा सन्तोष देगा। यह ग्रामीणोंके जीवनको समृद्ध करेगा और खुद आपके जीवनको भी समृद्ध करेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १७–९–१९२५
 

६३. भेंट : भारतीय मनोविश्लेषण संस्थाके सदस्योंसे[१]

कलकत्ता
२६ अगस्त, १९२५

श्री गांधोने कहा, "अवचेतन तत्व" की बातसे मैं पूरी तरह सहमत हूँ, किन्तु मेरे विचारसे मेजर बर्कले हिल द्वारा दिये गये सुझावका हम जैसा चाहते हैं वैसा प्रभाव नहीं होगा। मैं समझता हूँ, इसमें गोहत्या सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व नहीं है। इस समस्याके पीछे और भी बहुतसे ऐसे तत्त्व काम कर रहे हैं जिनमें से सबका निराकरण "अवचेतन तत्त्व" वाले दृष्टिकोणके अनुसार चलनेसे नहीं हो सकता। अलग-अलग कार्यकर्ताओंको विभिन्न प्रान्तीय परिस्थितियोंको ध्यानमें रखते हुए इस कामको हाथमें लेना चाहिए, लेकिन व्रतहीन ढंगसे नहीं। गोहत्याके विरुद्ध सबसे जबर्दस्त भावना बिहार और संयुक्त प्रान्तमें है। यह अतीतसे चली आ रही एक समस्या है और

 
  1. संस्थाके सदस्य ३–३० बजे शामको १४८, रसा रोड़में गांधीजी से मिले थे। पहले रांचीके यूरोपिय मेंटल हास्पिटलके सुपरिटेंडेंट मेजर ओवेन वर्कले हिलका एक भाषण उनके पास भेज दिया गया था उनके अनुसार हिन्दूओं और मुसलमानोंको एक करनेके प्रयत्नोंके असफल रहनेका कारण यह था कि समस्या के पीछे काम कर रहे अवचेतन तत्त्वों की ओर किसी का भी ध्यान नहीं गया। उन्होंने कहा कि गाय हिन्दूओंका "धर्म-प्रतिक" है इसलिए उसको लेकर हिन्दूओं के अवचेतन में मुसलमानों के प्रति विरोध की भावना घर कर गई है। जब किसी गाय का वध किया जाता है तो इस दबी हुई भावनाका भयंकर विस्फोट होता है और इसीके कारण उपद्रव होते हैं। उनका सुझाव था कि यदि कोई उपयुक्त प्रतीक-रूप पशु चुन लिया जाये और हिन्दू तथा मुसलमान एक स्थानपर एक ही साथ इस प्रतिककी कुर्बानीमें भाग ले सकें तो यह तनाव कम किया जा सकता है ‌ संघके सदस्योंने इस विषय पर गांधीजी से राय माँगी।