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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
मुझे याद है, इससे पहले भी दो-तीन मौकोंपर आपने कुछ मुसलमानोंकी ऐसी शिकायतें छापी थीं, जिनमें हिन्दुओंपर मस्जिदोंको अपवित्र करनेके इल्जाम लगाये गये थे। और अन्तमें जाँच-पड़ताल करनपर आपको यह मानना पड़ा था कि शिकायतें निराधार है। किन्तु आपने जो इल्जाम झूठ साबित हुआ उनका वास्तविक रूप प्रकाशित नहीं किया; और न उन्हें बाकायदा वापस हो लिया। शायद आपको इसकी याद नहीं रही! मुझे ऐसा लग रहा है कि "लोहानी" से सम्बन्धित यह शिकायत भी इसी तरहको मनगढन्त शिकायतोंका सबसे ताजा नमूना है। यदि आप १२-३-१९२५ के 'यंग इंडिया' का पृष्ठ ९१ देखगे[१] तो आपको याद आ जायेगा कि आपको पत्र लिखनेवाले उन मुसलमान सज्जनने जो अनेक शिकायतें लिख भेजी थीं, उनमें से सिर्फ लोहानीवाली शिकायतको हो आपने प्रकाशनार्थ चुना और शेषको "अपुष्ट" मानकर अस्वीकार कर दिया था। लेकिन अब आपके इस चुने हुए इल्जामका क्या नतीजा निकला? क्या लोहानी नामका कोई स्थान है भी? यदि है तो क्या यह इल्जाम सचाईपर आधारित है? अगर नहीं है तो जिस तत्परतासे आपने मूल शिकायत प्रकाशित की थी, क्या उसी तत्परतासे आप उसका खण्डन प्रका शित करके अपने-आपको इस पातकसे मुक्त करनेकी कृपा करेंगे? यदि यह काम आप यथासम्भव जल्दी ही कर डालें तो बहुत अच्छा हो।. . .

मैंने आखिरी दो-तीन वाक्योंको निकाल दिया है उनमें पत्र-लेखक साधारणतया जिस शैलीमें लिखते हैं, उससे कहीं अधिक उग्र हो गये है। मुझे पाठकोंको सूचित कर देना चाहिए कि मैंने मूल शिकायत करनेवाले महाशयसे तथा इस सिलसिलेमें उन्होंने जिन लोगोंका उल्लेख किया है, उन सबसे खूब पूछताछ की, पर मुझे भारतके नकशेमें वह मुकाम कहीं नहीं मिला। चूंकि मैंने अपनेको हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नका विशेषज्ञ या अधिकारी पुरुष मानना छोड़ दिया है, इसलिए मुझे पत्र-लेखक द्वारा उठाये अन्य महोंपर कुछ लिखनेकी आवश्यकता नहीं है। इस अनच्छेदके लिए भी मैने बहत अनिच्छापूर्वक स्थान निकाला, क्योंकि मैंने महसूस किया कि लोहानीके बारेमें अपनी जाँचका परिणाम पाठकोंके सामने रखना मेरी नैतिक जिम्मेदारी है।

पशुओंकी समस्या

श्री एन्ड्रयूजने मेरे पास जवाब देनेके लिए एक कतरन भेजी है। कतरन निम्न प्रकार है :

'राउण्ड टेबिल' नामक जिस त्रैमासिकमें राष्ट्रमण्डलकी राजनीतिकी सनीक्षाको जाती है, एक प्रश्न पूछा गया है : "दुनिया भारतके अलावा और कौन-सा देश है जहाँ पशु पूजाके कारण इतनी स्तम्भित कर देनेवाली आर्थिक हानि उठाई जाती है?" "ग्रामवासी भारतीयोंको निर्योग्यताएँ" ("डिसबिलिटोज ऑफ रूरल इंडियन") शीर्षक लेखमें इसके सम्बन्धमें आँकड़े दिये गये हैं, जिनसे प्रकट होता है कि इससे होनेवालो आर्थिक क्षति "ब्रिटिश भारतके
  1. देखिए खण्ड २६, "टिप्पणियाँ", पृष्ठ २८२