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कुल भूमि-करसे होनेवाली आयसे कहीं अधिक है।" इसपर एकाएक विश्वास नहीं होता। इस लेख में बताया गया है कि "कुछ लोगोंके मनमें सभी जातियोंके पशुओंके प्रति जो कोमल-भाव—बल्कि कहिए, पूज्यभाव है, उसके कारण वे उनको वंश-वृद्धि को रोक नहीं पाते। यहाँतक कि जब वे भूमिसे होनेवाली पैदावारमें मनुष्यसे हिस्सा बँटाने लगते हैं, या जब उनके कारण खेतीका पूरापूरा विकास असम्भव हो जाता है तब भी वह इनकी वंशवृद्धि रोकनेके लिए कुछ नहीं करता।" भारत गायके प्रति पूज्यभाव रखनेको स्तम्भित कर देनेवालो कीमत चुका रहा है, यह इन आँकड़ोंसे स्पष्ट हो जायेगा:
भारतको अतिरिक्त बैलोंसे होनेवाली हानि १,१५,२०,००,००० रु॰
भारतको अतिरिक्त गायोंसे होनेवालो हानि ६१,२०,००,००० रु॰

कुल १,७६,४०,००,००० रु॰

अगर प्रति पौंडमें १५ रुपये माने जायें तो कुल ११७,६००,००० पौंड हुए। कहते हैं, ब्रिटिश भारतको भूमि-करसे प्राप्त होनेवाला कुल राजस्व ३६ करोड़ रुपया है। इसका मतलब यह हुआ कि अतिरिक्त पशुओंसे होनेवाली वार्षिक आर्थिक क्षति भूमि-करको आयको अपेक्षा चार गुनीसे भी अधिक है।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारतमें बढ़ती हुई गरीबीकी तरह ही उसकी पशुसमस्या भी उत्तरोत्तर अधिकाधिक गम्भीर होती चली जा रही है। लेकिन, भारतकी पशु-समस्या यहाँके अधिकांश लोगोंके लिए, अर्थात हिन्दुओंके लिए गोरक्षाकी ही समस्या है—इसलिए गोरक्षाके व्यापक अर्थों में निस्सन्देह हमें यह "स्तम्भित कर देनेवाली हानि" तो बराबर उठाते रहनी पड़ेगी। अगर हममें "गायके प्रति पूज्यभाव" न हो तब तो हम अतिरिक्त और जर्जर पशुओंका तुरन्त वारा-न्यारा कर दें, और इस तरह एक अरब छिहत्तर करोड़ चालीस लाखकी वह रकम जिसका प्रलोभन हम लेखकने दिया है, बचा लें। इसी तरह इसमें भी कोई शक नहीं कि सारी अतिरिक्त आबादीको तमाम बीमार और कमजोर लोगोंको-मारकर हम इस देशको गरीबीसे भी छुटकारा दिला सकते हैं। और तब हममें से चन्द हजार लोग अपने-आपको उन भयंकर अथवा निरीह मनुष्यों और पशुओंसे, जिन्हें हम भाररूप मान रहे हैं, मुक्त करनेके लिए कुछ पिस्तौलों या इनसे भी तेजीसे काम करनेवाले अन्य हथियारोंसे लैस होकर इस विशाल भूभागमें बड़े मजेसे रह सकते हैं। लेकिन, जिस प्रकार अन्य देशोंमें गरीब और अपाहिज लोगोंको भाई माना जाता है, उसी प्रकार भारतमें हमें इनके साथ मवेशियोंको भी अपना मानकर चलाना पड़ेगा, और इसलिए गरीबीकी समस्याकी तरह मवेशियों की समस्याको भी अपने तरीकेसे, जिसे कुछ लोग अन्धविश्वासियोंका तरीका भी कह सकते हैं, हल करना होगा। गोरक्षा सम्मेलनमें दिये गये भाषणमें मैंने इसका रास्ता दिखानेकी कोशिश की है। धार्मिक भावनाका खयाल रखते हुए हम जहाँतक वैज्ञानिक तरीकोंसे काम ले सकते हों, वहांतक लेना ही चाहिए। हमें बधिया करनेका वैज्ञानिक तरीका अपनाना होगा, पशुओंको खिलानेका कम खर्च तरीका ढूँढ़ना होगा। जहाँतक पशु-कल्याणकी भावनासे संगत हो वहांतक उनसे अधिकसे अधिक