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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसी प्रश्नपर मुझसे बातचीत करना चाहेंगे, उसपर बातचीत करनेके लिए मेरे पास पूरा समय होगा। यह कहनेकी तो कोई जरूरत ही नहीं कि संविधानमें कोई भी ऐसा परिवर्तन, जिसे सदस्यगण सर्वसम्मतिसे चाहें, स्वीकार नहीं किया जायेगा। मुझे आशा है कि अ०भा० कां० कमेटीके सभी सदस्य आगामी बैठकमें भाग लेंगे।

यदि सब काम ठीक-ठीक हो जाये तो मेरी इच्छा है कि अखिल भारतीय चरखा संघका भी शुभारम्भ कर दिया जाये और चरखे तथा खद्दरसे सम्बन्धित विषयोंपर भी चर्चा हो। इसलिए खादीके सभी कार्यकर्ताओंसे भी मेरा अनुरोध है कि यदि वे इस संगठनके संविधानको बनाने में सहायता करना चाहते हैं तो इस अवसरपर यहाँ अवश्य पधारें।

[अंग्रेजीसे]
फॉरवर्ड, ३०-८-१९२५
 

७१. भाषण : राष्ट्रीयतापर

कलकत्ता
२८ अगस्त, १९२५

आज शामके वक्ताकी प्रशंसामें कुछ कहनेके दायित्वसे आप बड़ी होशियारीसे बचकर निकल गये हैं। क्या ही अच्छा होता, अगर मैं भी कुछ बोले बिना बच निकलता। मैंने आशा की थी कि आपकी थोड़ी-सी प्रशंसा मिल जानेसे मुझे कुछ उत्साह मिलेगा, लेकिन वैसा मेरी किस्मतमें नहीं था। लेकिन आप इस सभाका[१] संचालन जिस तरह कर रहे हैं और जिस तरह आपने इस छोटी-सी लड़की (एक ५ सालकी लड़कीकी ओर इशारा करते हुए) को माला पहनाई है, उससे प्रकट होता है कि आप कमसे-कम किसी प्रकारका जाति-विद्वेष रखनके अपराधी नहीं हैं।

लेकिन भारतमें इस समय नई पीढ़ीको निःसन्देह इसी समस्याका सामना करना पड़ रहा है। क्या यह सम्भव है कि कोई अपने देशको प्यार करे और उनसे घृणा न करे जो उसके देशपर शासन करते हैं और जिनका हम शासन नहीं चाहते; बल्कि कहना चाहिए जिनके शासनको हम हृदयसे नापसन्द करते हैं? बहुत-से नौजवानोंके हृदयमें इसका उत्तर यह रहा है कि अपने देशको प्यार करना और उसपर शासन करनेवालोसे घणा न करना असम्भव है। कूछने खुलेआम अपने इस विचारको व्यक्त किया है और किसी-किसीने उसे कार्यरूप देकर भी दिखाया है। लेकिन बहुतसे लोग मन-ही-मन ऐसा विचार रखते हैं और उनकी मनोरचना भीतर-ही-भीतर उससे प्रभावित होती रहती है।

  1. यह सभा मैकानो कल्बके तत्त्वविधानमें ओवरटन हॉलमें हुई थी। सभामें प्रवेश करने के लिए शुल्क रखा गया था, जिससे मिली रकम अखिल बंगाल देशबन्धु स्मारक कोशको दी गई थी‌। सभा की अध्यक्षता रेव॰ टी॰ ई॰ टी॰ शोरने की थी।