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भाषण : राष्ट्रीयतापर

अपने विरोधियोंकी कमजोरियाँ समझनी चाहिए, उनकी बुराइयाँ समझनी चाहिए, और फिर भी इन दोषोंके बावजूद उनसे घृणा नहीं करनी चाहिए, वरन् बने तो उनसे प्रेम भी करना चाहिए। यह अपने-आपमें एक बड़ी शक्ति है। पशुबल तो हमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासतमें मिलता आया है। हमने इसका प्रयोग करके देख लिया कि इससे यूरोपका और संसारका कितना नुकसान हुआ। यूरोपीय सभ्यताको चमक-दमक हमें चमत्कृत नहीं करती। ऊपरी चमकदार परत हटाकर देखें तो आप पायेंगे कि अन्दर ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे पसन्द किया जा सके।

एक क्षणको भी आप ऐसा न मानें कि मैं पश्चिमकी सभी चीजोंका निन्दक हूँ। इस समय मैं आधुनिक सभ्यताकी—इसे पाश्चात्य सभ्यता नहीं कहें—प्रमुख विशेषताकी चर्चा कर रहा हूँ, और इसकी प्रमुख विशेषता विश्वमें बलवान जातियों द्वारा कमजोर जातियोंका शोषण है। उसकी प्रमुख विशेषता भौतिक समृद्धिको भगवान मानना है। मैंने इसे 'शैतान' कहने में भी संकोच नहीं किया है। जिस शासन प्रणालीके अन्तर्गत हम कष्ट झेल रहे हैं, उसे मैंने शैतानी शासन कहने में संकोच नहीं किया है। और मैं उसमें से एक शब्द भो वापस नहीं लेता। लेकिन आज इसकी चर्चा नहीं करूँगा। अगर मैं बुराई करनेवालोंको सजा देनेका उपाय ढूँढ़ने लगू तो मेरा काम होगा उनसे प्यार करना और धैर्य तथा नम्रताके साथ उन्हें समझाकर सही रास्तेपर ले आना। इसलिए असहयोग या सत्याग्रह घृणाका गीत नहीं है। मैं जानता हूँ कि अपनेको सत्याग्रही या असहयोगी बतानेवाले बहुतसे लोग इस शब्दके योग्य नहीं है। उन्होंने स्वयं अपने धर्मके प्रति हिंसा की है। वे इस सिद्धान्तके सच्चे प्रतिनिधि नहीं थे। सच्चे असहयोगका मतलब बुराई करनेवालेसे नहीं, बल्कि बुराईसे असहयोग करना है। मैं जानता हूँ कि कभी-कभी बुराई करनेवालेमें भेद करना कठिन हो जाता है। सवाल यह है कि बुराई करनेवालेसे नहीं, बुराईसे असहयोग करें कैसे? मैं इस गूढ़ सिद्धान्तकी पूरी चर्चा यहाँ नहीं करना चाहता। मैं तो सिर्फ उसीकी चर्चा कर सकता हूँ, जो इन ५-६ वर्षोंसे होता रहा है। अगर हम इस सिद्धान्तके रहस्यको समझ जायें और बुराईसे घृणा करके भी बुराई करनेवालेसे घृणा न करनेके बीच जो सुन्दर संगति है, उसे समझ जायें तो जैसा कि मैंने कहा है, हमें आज जरूरत सिर्फ इतना करनेकी है कि पारिवारिक सम्बन्धोंमें हम जो नियम लागू करते हैं उसे राजनीतिक क्षेत्रमें भी लागू करें और इसलिए उसे शासकों और शासितोंके बीचके सम्बन्धोंपर भी लागू करें। फिर तो आपको आसानीसे सही हल मिल जायेगा। जिस पुत्रमें बुरे काम करने और बिगड़नेकी प्रवृत्ति होती है, उसके साथ पिता कैसा व्यवहार करता है? वह न उसे सजा देता है, न बढ़ावा, बल्कि उसे सुधारनेकी कोशिश करता है।

आपके असहयोगका उद्देश्य बुराईको बढ़ावा देना नहीं है। यही इसका मतलब है। एक बहुत बड़े लेखकने कहा है कि अगर दुनिया बुराईको बढ़ावा देना बन्द कर दे तो बुराई अपने लिये आवश्यक पोषणके अभावमें अपने-आप मर जाये। अगर हम यह देखनेकी कोशिश करें कि आज समाज में जो बुराई है, उसके लिए खुद हम कितने