पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मूंदकर उसका परित्याग भी नहीं करना चाहिए। ईश्वरने हम सबको विवेक-बुद्धि दी है। उसका उपयोग किया जाना चाहिए। स्वदेशीको, जो-कुछ पहलेसे मौजूद है उसे बचाकर रखनेकी वृत्ति ऐसी विवेकयुक्त है जो हमारे राष्ट्रीय जीवन में निहित सारो उत्तम चोजोंको कायम रखेगी और साथ ही आधुनिक संसारमें जो-कुछ श्रेष्ठ है, पाश्चात्य सभ्यतामें जो कुछ श्रेष्ठ है उसे भी ग्रहण करके अपने भीतर पचाती जायेगी, किन्तु बेशक उसका छिछला अनुकरण नहीं करेगी। इस तरह हम आज जितने अच्छे हैं, उत्तरोत्तर उससे अधिक अच्छे होते जायेंगे। लेकिन हमारे धर्ममें कुछ ऐसा बुनियादी तत्त्व भी है, जिसमें सुधारको कोई गुंजाइश नहीं है। इस कथनमें हम भला क्या सुधार कर सकते हैं कि "सत्य और प्रेमका ही नाम ईश्वर है?" दूसरी ओर, कुछ रीति-रिवाज हैं, जो हमें अपने पूर्वजोंसे विरासतमें मिले हैं? विभिन्न परिस्थितियोंमें इन रिवाजोंमें अन्तर पड़ते जाना अनिवार्य है। अगर हम देखें कि कोई रिवाज हमारो बुद्धिसे, मानवीयताके हमारे बोधसे मेल नहीं खाता तो हमें चाहिए कि हम उसे अस्वीकार कर दें।

लेकिन, मुझे मालूम है कि स्वदेशीको लोगोंने आजकल एक बहुत आसान चीज बना रखा है। लोग जर्मनी या जापानसे किसी चीजके निर्माणके लिए जरूरी उपादान मॅगाकर उन्हें जोड़-जाड़ कर मान लेते हैं कि यह स्वदेशी हो गई। यह तो स्वदेशीका मजाक उड़ाना है।

मेरो स्वदेशोका मतलब खादी है। मैंने उसी एक चीजको अपना सारा आधार बना रखा है और अपनी स्वदेशीको इसी दायरेतक सीमित किया है। विदेशोंसे उपादान मँगाकर तैयार की गई ऐसी चीजोंका, जिन्हें हम मुनाफेके साथ अपने ही देशमें तैयार कर सकते हैं, इस्तेमाल हमें कभी नहीं करना चाहिए। इसमें किसीके विरोधका कोई भाव नहीं है। मेरे कहनेका मतलब यह है कि 'उदारताका प्रारम्भ घरसे होना चाहिए', स्वदेशी इसी नियमका एक प्रयोग है। यह नियम हमें सिखाता है कि अगर हम अपने परिवार, अपने पड़ोसी को सेवा नहीं करते तो हम दूरके लोगोंकी सेवा भी नहीं कर सकेंगे। याद रखिए कि मिलके बने एक गज कपड़ेपर मजदूरोंकी जेबमें एक पाई जाती है, जबकि एक गज खादीपर--गाँवोंसे प्राप्त की गई एक गज खादीपर–अकालग्रस्त ग्रामवासियोंकी जेबमें कमसे-कम चार आने जाते हैं। तो अब आप ही तय कोजिए कि आप किस रास्ते चलेंगे–एक पाई दिलानेवाले रास्तेपर या चार आने दिलानेवाले रास्तेपर।

[अंग्रेजीसे]
फॉरवर्ड, ३०–८–१९२५