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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


महात्मा गांधीने आगे कहा कि भारतीय ईसाइयों और भारतीय मुसलमानों तथा हिन्दुओंके बीच बहुत बड़ी खाई दिखाई देती है। इसमें सन्देह नहीं कि यह खाई दिन-ब-दिन पटती जा रही है। लेकिन अब इसे तनिक भी देर किये बिना बिलकुल पाट देना चाहिए। किसी भी धर्मके अनुयायोको दूसरे तमाम धर्मोके अनुयायियोंसे प्यार करना चाहिए। अपने त्रावणकोरके अनुभवका जिक्र करते हुए महात्माजीने बताया कि उस राज्यमें काफी शिक्षित और सुसंस्कृत भारतीय ईसाई बहुत बड़ी तादाद में है। मुझे यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि वे लोग दूसरे धर्मोके अनुयायियोंके प्रति हर प्रकारको घृणा और दुर्भावनासे मुक्त होने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे ईसाइयोंकी संख्या जितनी जल्दी बढ़े भारतके लिए उतना ही अच्छा होगा।

अपना भाषण जारी रखते हुए महात्मा गांधीने कहा कि आप लोग अपने मूल धर्मसे बहुत दूर जा पड़े हैं। इसलिए आप लोगोंको अपने पुराने भाई-बन्धुओंके पास पुनः प्रेमपूर्वक वापस आनके लिए तैयार रहना चाहिए। आपने दूसरे धर्मको इसलिए स्वीकार किया है कि आप अपने प्राचीन पूर्वजोंके अन्धविश्वासों और गलतियोंसे ऊपर उठ सकें—कमसे-कम आपके मनमें तो ऐसा ही खयाल है। इसलिए आपको अपने भाई-बन्धुओंके प्रति हर प्रकारको दुर्भावना या घृणाके भावको त्याग देना चाहिए। इसके बाद उन्होंने आन्तर्राष्ट्रीयताकी चर्चा करते हुए कहा कि राष्ट्रीयताको अपनाये बिना कोई भी अन्तर्राष्ट्रीयतावादी होनका दावा नहीं कर सकता। जो व्यक्ति अपने परिवार, अपने गाँव, अपने देशको सेवा नहीं कर सकता वह दुनियाकी सेवा क्या करेगा? अन्तर्राष्ट्रीयतामें दुर्भावना, विद्वष या घृणाके लिए कोई स्थान नहीं है, इसमें तो सिर्फ शान्ति और सद्भावना ही है और जो व्यक्ति अपने पड़ोसियोंको हृदयसे प्यार करना प्रारम्भ नहीं कर देता, वह बाहरी दुनियाके प्रति भी अपने भीतर प्रेमको भावना नहीं जगा सकता। आप लोगोंके लिए ईसाइयतका मतलब राष्ट्रीयताको ज्यादा अच्छी अभिव्यक्ति होना चाहिए। इसलिए अगर आप दनियाके हितमें अपनी जान देनेके दावेदार बनना चाहते हैं तो पहले आपको अपने राष्ट्रके लिए मर मिटनको तैयार रहना चाहिए। मेरे विचारसे ईसाइयतको राष्ट्रीयताके विरुद्ध नहीं पड़ना चाहिए; बल्कि होना यह चाहिए कि आप राष्ट्रहितमें अपने जीवनको और अधिक उत्सर्ग करनेको तत्पर हों। और इसके लिए आपको जनसाधारणके हृदयमें प्रवेश करना चाहिए। मैंने बहुतसे ईसाइयोंको ऐसा कहते सुना है कि हमें भारतको सामान्य जनतासे कोई मतलब नहीं है। मैं समझता हूँ, किसी भी धर्ममें ऐसा कह सकने की गुंजाइश नहीं है, क्योंकि सभी धर्म किसी-न-किसी बातमें अपूर्ण है। इसलिए, मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि ऐसे विचारोंको आप अपने मनसे निकाल दें।

इसके बाद भारतकी गरीबीकी चर्चा करते हुए महात्माजीने कहा कि निश्चय ही ईसाइयतका मतलब अपनी आवश्यकताओंको बढ़ाते जाना नहीं है—ऐसी आवश्यकताओंको, जिन्हें गरीब भारत पूरा नहीं कर सकता। बहुतसे लोग कह सकते