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हमारा महारोग

है कि हमारा दृष्टिकोण एक संकुचित दायरेतक सीमित नहीं है। उनसे तो मैं यही कहूँगा कि आप जरा अपने हृदयको टटोल कर देखिए कि क्या आपकी ये बातें आपके धर्मसे मेल खाती हैं। और मुझे पूरा विश्वास है कि आप किसी भी तरह अपनी इन बातोंका मेल अपने धर्मसे नहीं बैठा सकेंगे।

अन्तमें महात्माजीने अनुरोध किया कि अगर आप चरखा नहीं चला सकते तो कमसे-कम खादी तो अवश्य पहनिए। आप अपनी खरीदी हुई खादीके प्रत्येक गजपर कमसे-कम चार आने गाँवोंमें रहने वाले अपने उन दीन-दुखी भाइयोंको देते हैं, जो भूखसे मुख्यतया इसलिए तड़प रहे हैं कि उनके पास पर्याप्त काम नहीं है। अपना भाषण समाप्त करते हुए महात्माजीने कहा कि आपका धर्म पूरी तरहसे मनुष्य जातिकी सेवाको भावनापर आधारित है। उसके उच्च सिद्धान्तोंको कार्यरूप देनके लिए आपको खादी खरीदकर दूर-दूरके गाँवोंमें रहनेवाले अपने भूखसे तड़पते भाइयोंकी रक्षा अवश्य करनी चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ३०–८–१९२५
 

७४. हमारा महारोग

हिन्दुस्तान किसानोंका देश है। वैसे तो सारी पृथ्वी किसानोंकी है। परन्तु दूसरे देशोंके लोग अकेली खेतीपर निर्वाह नहीं करते। कितने ही देशोंके लोग शिकारपर अपना गुजारा करते हैं। इंग्लैंड उद्योग-धन्धोंपर जीता है। अपने लिए आवश्यक बहुतसा अनाज वह बाहरसे मँगाता है। परन्तु हिन्दुस्तानका आधार तो एकमात्र खेती ही है। यदि पानी न बरसे तो लाखोंको भूखों मरनेकी नौबत आ जाती है। चौमासेमें किसानोंको बादलोंका मुँह ताकते रहना पड़ता है।

परन्तु खेती बारहों मास तो थोड़े ही लोग कर सकते हैं। इस कारण करोड़ों लोग चार-छः मासतक बेरोजगार रहते ह। इससे हम काहिल हो गये हैं। हमेशासे हमारी यह हालत नहीं रही है। जब हम खुद अपने कपड़े तैयार करते थे तब यही करोड़ों लोग उद्यमरत रहते थे। आज वे आलस्यमें डूबे हुए है। उनकी आँखोंमें तेज नहीं; आशा नहीं, उनके चेहरोंपर उत्साह नहीं। आज हमारी दशा ऐसी हीन हो गई है मानो आलस्य हमारा स्वभाव ही बन गया हो। किसानों-जैसी यह काहिली मध्यम वर्गमें तो है ही। काहिल कौमको स्वराज्य हरगिज नहीं मिल सकता। काहिली विनाशका कारण है। लाखों लोगोंमें भ्रमण करते हुए मैंने देखा है कि लोग बातें करते हुए अथवा गुमसुम बैठें रहनेमें थकते ही नहीं। यदि मैं सावधान न रहें तो अनेक लोग मेरे पास आकर बैठें रहें और समझें कि वे पुण्य कर रहे है।

यह काहिली हमारा महारोग है। हमारी कंगाली उसका लक्षण है। मैं मानता हूँ कि हमारी कंगालीका कारण सिर्फ हमारे देशसे धनका बाहर चला जाना ही नहीं