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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। यह उसके अनेक कारणोंमें से एक हो, ऐसा भी नहीं है। हमारी कंगाली और हमारे बासका असली कारण तो हमारा आलस्य है। और आलसी आदमी यदि गलाम न हो तो क्या हो? ऐसा आदमी संसारमें आजतक स्वावलम्बी न बना, न आगे बन सकेगा।

यह काहिली किस तरह दूर हो? कुछ-न-कुछ उद्यम करतेसे। ऐसा कौन-सा उद्यन है, जिसे करोड़ों मनुष्य कर सकते है? मेरी नजरमें तो ऐसा एक ही उद्यम है—चरखा। यदि कोई जनहितके लिए चरखेसे अधिक अच्छा उद्यम खोज सके तो वह बेशक चरखा न चलाये। मेरा तो शुरुसे ही यही कहना है कि चरखा निरुद्यमीको उद्यमी बनाने का सर्वोतम साधन है। परन्तु यदि कोई इससे अधिक कारगर सार्वजनिक साधन बतायेगा तो उसकी वन्दनामें मेरा मस्तक सहज ही झुक जायेगा। मुझे ऐसे लोग तो बहुत मिलते हैं जो प्रसंग उठनेपर कहते है कि मैं तो उद्यमी हूँ ही। पर इससे क्या सारा हिन्दुस्तान उद्यमी हो गया? हिन्दुस्तानमें दस-बीस करोड़पति है, पचीस-पचास राजा है; पर इससे क्या सब करोड़पति और राजा हो गये? सुखी लोग भी, जब हिन्दुस्तानके दुःखमें अपने को दुःखी मानेंगे तभी हम एक-राष्ट्र कहे जायेंगे। श्रीकृष्ण-जैसे व्यक्तिको भी अपने लिए आवश्यक न होते हुए भी लोकसंग्रहके लिए उद्यम करना पड़ा था। और केवल स्वार्थ-प्रेरित उद्यम ही काफी नहीं है। करोड़ों लोग जिस उद्यमको स्वार्थवश करेंगे, उसे लोकनायक या कहिए लोकसेवक परमार्थके लिए करेंगे। यदि वे न करें तो स्वार्थके लिए उद्यम करनेवाले भी मोहमें या भ्रममें पड़कर उस उद्यमको त्याग देंगे। यहाँ तो निरुद्यमीको उद्यमी बनाना है। और उद्यम भी ऐसा सिखलाना है, जिससे हर व्यक्तिका और समाजका कल्याण हो। ऐसा उद्यम चरखा ही दे सकता है। इसीलिए मैं चरखेको कामधेनु कहता हूँ। एक बार लोग यदि वक्तकी कीमतको समझ लें तो दूसरी बातें अपने-आप सूझ जायेंगी।

श्री एन्ड्रयूजने दो सवाल पूछे हैं। मवेशीका इन्तजाम अच्छा न होनेके कारण हर साल करोड़ोंका नुकसान होता है। और लोग मैले का सदुपयोग नहीं करते, इससे करोड़ों की बाद बेकार जाती है और बीमारियाँ फैलती है। आप जो चरखेपर इतना जोर देते हैं, तो मवेशी और गन्दगीके सवालपर जोर देकर सहज ही करोड़ों रुपये बचाने की कोशिश क्यों नहीं करते? सो मवेशीकी हिफाजतके लिए गोरक्षाके कामका भार मैंने उठाया है। गन्दगीका सवाल बड़ा टेढ़ा है और उसका भी कारण कुछ अंशोंमें आलस्य ही है। यदि लोग उद्यमकी कीमत समझ लें तो मवेशी तथा गन्दगीका सवाल तुरन्त हल हो जाये। यदि चरखे-जैसा आसान और तत्काल फल देनेवाला उद्यम लोग न कर सकते हों तो पशुओंका या गन्दगीका मसला, जिस लिए बहत अधिक प्रयत्न करने के बाद ही कोई फल निकल सकता है, लोग किस तरह समझेंगे? इस तरह जिस दृष्टिसे भी देखिए, एक ही चीज दिखाई देगी। हिन्दुस्तानका महारोग आलस्य है और उसे दूर करनेका एकमात्र उपाय चरखा है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३०–८–१९२५