पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/१७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४७
हमारी गन्दगी–१

पुरमें जो-कुछ देखा वह अपनी तरहका पहला उदाहरण था। ये भाई भयका त्याग कर दें, यही मेरी इच्छा है।

[गजरातीसे
नवजीवन, ३०-८-१९२५
 

७६. हमारी गन्दगी–१

गन्दगीके सम्बन्धमें श्री एन्ड्रयूज द्वारा उठाये गये प्रश्नकी चर्चा मैंने इसी अंकमें[१] अन्यत्र की है। फिर भी उसपर स्वतन्त्र रूपसे विचार करनेकी आवश्यकता तो है ही। मुझे यह भी याद है कि जब मैंने 'नवजीवन' के सम्पादक-पदका भार सँभाला, तब आरम्भमें ही इस विषयपर लिखा था। लेकिन यह विषय ऐसा है, जिसपर बराबर लिखा जा सकता है।

शौचके हमारे नियम बहुत अच्छे है। स्नान हमेशा करना ही चाहिए। परन्तु इन तमाम क्रियाओंका रहस्य हम नहीं जानते, इसलिए यह चीज एक रिवाजके रूपमें ही रह गई है अथवा वहमके कारण हम ऐसा मानते हैं कि चाहे जैसे और चाहे जितने थोड़े जलका स्पर्श हमें पवित्र कर देता है और हम स्वर्गके अधिकारी बन जाते है। विज्ञान तो हमें यह सिखाता है कि वही स्नान गुणकारक होता है जो निर्मल जलसे बदनको इस तरह मलकर किया जाता है, जिससे वह साफ हो जाये। महज पानीके छींटे बदनपर डाल लेनेसे अथवा यों ही पानी उँडेलकर मैले कपड़े पहननेसे लाभ तो कुछ नहीं, उलटा नुकसान हो सकता है। हमारे पाखाने तो इस पृथ्वीपर ही मानो नरककी खान हैं। उनमें बैठना पाप ही है। थोड़े परिश्रम, विचार और विवेकसे हम उनमें सुधार कर सकते हैं। उसमें खर्चका सवाल ही नहीं है। सिर्फ ज्ञानकी आवश्यकता है। गरीबसे-गरीब आदमी भी यदि चाहे तो शौचके नियमका पालन कर सकता है। हाँ, उसे अपना मैला देखने या साफ करनेमें घिन न होनी चाहिए। किसानोंको तो यह घिन नहीं होती। वे तो बड़े गन्दे तरीकेसे गन्दे कूड़े-कचरेको गाड़ियोंमें भरते है

अहमदाबादके मुहल्ले और गलियाँ गन्दी रहती है, उसका कारण गरीबी नहीं, बल्कि घोर अज्ञान और काहिली है। मद्रासमें तो मैंने साहूकारोंके मुहल्ले में पचास-पचास साल तकके धनिक लोगोंको गली में ही सुबह-सुबह टट्टी जाते हुए देखा है। इस दृश्यको याद करके ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हरिद्वारमें गंगाके पवित्र किनारेको तीर्थयात्री सुबह-शाम दुर्गन्धित कर देते हैं। वहाँ बैठना या घूमना असम्भव हो जाता। ये भले आदमी कितनी ही जगह तो ज्योंके-त्यों नदीमें जाकर आबदस्त लेते है। शौचस्थानपर जलतक नहीं ले जाते। त्रिचनापल्लीमें तो नदीमें मैला यों ही बहता हुआ देखा जा सकता है। और इसी पानीसे लोग नहाते हैं, इसीको पीते हैं। बंगालमें छोटे

  1. देखिए "हमारा महारोग", ३–८१९२५।