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७८. टिप्पणियाँ
स्वर्गीय डा॰ भाण्डारकर[१]

सर रामकृष्ण भाण्डारकरकी मृत्युसे हमारे बीचसे संस्कृतका एक प्रख्यात विद्वान् और समाजसेवक उठ गया है। उन्होंने संस्कृतकी जो महान् सेवा की है, उसे लोग सदा याद रखेंगे। उन्होंने अंग्रेजी बोलनेवाले भारतीयोंके लिए संस्कृत पढ़ना सुगम, रोचक और लोकप्रिय बना दिया। उनके द्वारा लिखी हुई संस्कृतको पाठ्यपुस्तकें आज भी लोकप्रिय है। उनके शोध-कार्यको देश-विदेशके प्राच्य विद्याके तमाम विद्वानोंने मान्यता और उसकी सराहना की है। वे संस्कृतके उद्भट विद्वान् तो थे ही, सच्ची लगनवाले समाजसुधारक भी थे। इस दिवंगत विद्वानको देश सदा कृतज्ञतासे याद करेगा। श्री भाण्डारकरके शोक-सन्तप्त परिवारके साथ में आदर-सहित अपनी समवेदना प्रकट करता है।

अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीकी आगामी बैठक

मैं आशा करता हूँ कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीका हर सदस्य कमेटीकी आगामी बैठकमें हाजिर होकर उसकी कार्यवाहीमें अवश्य शरीक होगा और अपनी राय जाहिर करेगा। यदि दैवयोगसे कारणवश किसीको रुक जाना पड़े तो बात दूसरी है। कांग्रेसके विधानमें जो परिवर्तन सुझाया गया है, वह उसी अवस्थामें ठीक माना जा सकता है जब उसके लिए सर्वसम्मतिसे और आग्रहपूर्वक माँग की जाये। और यह साबित करने के लिए कि इस परिवर्तनको सभी सदस्य चाहते हैं और इसपर उनका आग्रह है, यह जरूरी है कि आवश्यक हो तो खासी असुविधा और नुकसान उठाकर भी हरएक सदस्य उपस्थित हो। अगर सदस्य ऐसा मानकर कि अमुक बात तो मंजूर हो ही जायगी, उपस्थित सदस्योंको, उन्हें जो मुनासिब लगे, करने देंगे तो इससे काम न चलेगा। अनुपस्थितिका समुचित कारण बताकर न आयें तब तो ठीक; अन्यथा उससे जिम्मेदारीके बोधका अभाव जाहिर होगा। सदस्योंको समझना चाहिए कि मैंने इस साल अबतक उन्हें कोई कष्ट नहीं दिया है और यदि आवश्यक प्रसंग उपस्थित न हो गया होता तो मैं उन्हें अब भी कष्ट न देता। मेरी रायमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठक और उसके निमित्त होनेवाला खर्च तभी उचित माना जा सकता है जब कोई नई नीति निर्धारित करनी हो, या महत्त्वपूर्ण और बोधप्रद कोई प्रस्ताव पास करने हों। पहले विचार यह था कि समितिकी बैठक १ अक्तूबरको बम्बईमें की जाये। लेकिन, लोगोंने यह सुझाव दिया कि बैठक यदि जल्दी बुलाई जाये तो सदस्योंको अधिक सहूलियत होगी और इसे बम्बईके बजाय पटनामें बुलाना ज्यादा

  1. (१८३७–१९२५); प्राच्य विधा-विशारद और समाज सुधारक; पूना के ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूटका नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया था। गांधीजीकी उसने सर्वप्रथम भेंट १८९६ में एक सार्वजनिक सभाके अवसर पर हुई थी। देखिए खण्ड २ पृष्ठ १४७।