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टिप्पणियाँ

उठानेका उपयुक्त समय आयेगा। कांग्रेसियों तथा अन्य दलवालोंके मतभेद सबको मालूम हैं और वे बिलकुल स्पष्ट है। पहले खुद कांग्रेसियोंको ही यह विचार कर लेना चाहिए कि वे किस हदतक आगे जा सकते हैं, उसके बाद ही वे दूसरे दलोंके नेताओंके साथ परामर्श करें। फिलहाल मुझे अपनी तरफसे सभी सम्बन्धित लोगोंको यह आश्वासन देकर ही सन्तोष मानना पड़ेगा कि सभी दलोंको एक मंचपर लानेके लिए मैं बहुत व्याकुल हूँ। पर मैं जानता हूँ कि जब मतभेद बुनियादी हों तो इच्छा कितनी भी ती क्यों न हो सबको एक मंचपर लाना कठिन होता है। मानव-समाजपर ही रसायनशास्त्रका यह सिद्धान्त कि 'परस्पर विरोधी वस्तुओंके संयोगका फल विस्फोटके रूपमें प्रकट होता है', लागू होता है। कांग्रेसियोंका लक्ष्य है ऐसी वास्तविक एकता प्राप्त करना, विभिन्न दलोंका ऐसा संगठन तैयार करना जिससे हमारी शक्ति बढ़े। यही उनका लक्ष्य होना भी चाहिए। पैबन्द लगाकर कामचलाऊ एकता कायम करनेसे तो राष्ट्र सिर्फ कमजोर ही होगा और राष्ट्रीय उद्देश्यकी सिद्धि के मार्ग में बाधा ही पड़ेगी।

बिहारमें खादी

पुरुलियासे एक भाई लिखते हैं :[१]

इस पत्रसे दो महत्त्वपूर्ण सवाल उठते हैं। एक तो यह कि कभी-कभी खादी पहननेसे कोई लाभ है या नहीं? इस सिद्धान्तके अनुसार कि 'कुछ भी नहींसे कुछ अच्छा है,' प्रसंग विशेषपर खादी पहननेको भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए। हम घरमें कते सूतसे घरमें बुनकर तैयार की गई खादीकी बिक्री चाहते हैं। ऐसी अवस्थामें ऐसी खादीकी जितनी माँग हो उतना ही अच्छा है। जो लोग खास मौकोंपर ही उसका इस्तेमाल करते हैं, सम्भव है कि वे लोग आगे चलकर हमेशाके लिए ऐसा करने लगे। इसलिए मैं तो हर हालतमें उसके इस्तेमालको प्रोत्साहन दूँगा। मैं इस बातको भी स्वीकार नहीं कर सकता कि जो लोग कभी-कभी ही खादी पहनते हैं, वे ढोंगी और पाखण्डी ही हैं। जो व्यक्ति अपने असली रूपको छिपा कर अपनेको कुछ और ही दिखाता है वह पाखण्डी है; जो इस प्रकारका झूठा दिखावा नहीं करता, उसे पाखण्डी नहीं कहा जा सकता। जो व्यक्ति छिपकर शराब पीता है, पर अपने पड़ोसीको यह विश्वास दिलाता है कि वह तो शराबको छूता भी नहीं, वह पाखण्डी और त्याज्य है। मगर जो अपनी शराबखोरीकी आदतको नहीं छिपाता है, मित्रोंकी भावनाका खयाल करके मित्रोंके सामने या समाजमें शराब नहीं पीता, वह पाखण्डी नहीं है। इसके विपरीत वह एक विचारवान और समझदार आदमी है और उसके उस दुर्व्यसनसे छुटकारा पा जानेकी पूरी आशा है। ऐसी अवस्थामें पुरुलियाके जिन

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने गांधीजीको लिखा था कि चूंकि आप पुरुलिया आनेवाले है, इसलिए जबतक आप यहाँ रहेंगे, तबतक पहननेके लिए लोग अब खादी खरीद रहे हैं। इस तरह विशेष अवसरोंपर खादी पहनने से क्या फायदा? यह तो पाखण्ड है। पत्र लेखकने यह शिकायत भी की थी कि शुद्ध खादी नहीं मिलती और जापानमें तथा भारतीय मिलोंमें बने कपड़ेको खादीके नामपर बेचा जाता है।