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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोगोंके बारे में मेरे आगमनके उपलक्ष्य में खादी खरीदने की खबर है वे यदि उसे इसलिए खरीदते हैं कि मुझे यह विश्वास हो जाये कि उन्होंने कभी दूसरा कपड़ा पहना ही नहीं तो वे अवश्य ढोंगी है। पर मुझे इस बातपर विश्वास नहीं होता कि वे ऐसे किसी बुरे विचारसे खादी खरीद रहे होंगे। यह बात मुझसे छिपी नहीं है कि बहुतेरे लोगोंने अभीतक मिलका बना हुआ कपड़ा पहनना, फिर वह देशी मिलोंका हो या विदेशी मिलोंका, छोड़ा नहीं है। पर वे कभी-कभी खादी पहनना नापसन्द नहीं करते और चूंकि अब खादी कांग्रेसका पहनावा हो गया है इसलिए जो लोग कांग्रेसके समारोहोंके अवसरपर कभी-कभी ही शरीक होते हैं, वे भी खादी पहनना उचित समझते हैं। इसलिए मैं यह तो जरूर चाहूँगा कि बिहारमें जो लोग मेरे आगमनपर वहाँ होनेवाले कांग्रेसके समारोहोंमें शरीक हो सकनेके खयालसे खादी खरीद रहे हैं, वे बराबर खादी ही पहना करें, किन्तु मेरे आगमनके सिलसिले में उनके खादी पहनने की मैं निन्दा नहीं कर सकता। इससे बिहारकी बची हुई खादी बिक जायेगी और उतना रुपया अधिक खादी बनाने के लिए मिल जायेगा। यह लाभ चाहे जितना छोटा हो, किन्तु लाभ तो है ही।

पत्र-लेखकने जो दूसरा मुद्दा उठाया है, वह गम्भीर है। नकली मालसे बचनेका एक ही तरीका है और वह यह कि खरीदार पूरी तरह परख कर देख लें और जब उन्हें विश्वास हो जाये कि माल शुद्ध है, तभी वे खरीदें। कांग्रेसकी संस्थाएँ या खादी संगठन इसे बन्द करने या कमसे-कम उसे रोकनेमें, बहुत मदद कर सकते हैं। पत्र-लेखक कहते हैं कि तमाम मुख्य-मुख्य शहरोंमें कांग्रेसकी तरफसे खादी-भण्डार खोले जाने चाहिए। इस तरहकी कुछ कोशिश की भी गई है, पर यह सवाल है रुपये का और संगठनका। अखिल भारतीय चरखा संघकी स्थापनाका विचार ऐसी ही खराबीकी रोक-थाम करनके उद्देश्यसे किया गया है। इस बीच मैं पत्रलेखक-जैसे सज्जनोंसे आग्रह करूँगा कि वे सुविधाके अभावमें खादीको छोड़ न दें। चूंकि खादी और चरखके सफल संगठनको प्रक्रियामें हमारे स्वभावके उत्तम अंशको पनपने और प्रकट होने का अकसर मिलता है इसीलिए मैं अकसर कहा करता हूँ कि चरखेको अपनानेसे हम स्वराज्यतक पहुँच जायेंगे।

अर्ध-खादी

लेखकने कांग्रेस संस्थाओं द्वारा अर्ध-खादी बनाने और बेचनेका भी जिक्र किया है। यह बुराई बहुत गम्भीर है। कांग्रेस-संस्था, जो शुद्ध खादी बेचने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध है, अर्ध-खादीसे कोई वास्ता नहीं रख सकती। जबतक कांग्रेसी लोग इस सीधी-सादी बातको नहीं समझ लेते कि अर्ध-खादी बनाने से हाथ-कते सूतकी तरक्कीमें बाधा पड़ती है, तबतक लोग अच्छा सूत नहीं कातेंगे। हाथ-कते सूतकी किस्म सुधारनेका सबसे पक्का और जल्दीका तरीका यह है कि बुनाईमें उसका उपयोग तानेके लिए किया जाये और इस तरह करपर उसकी मजबूतीकी परख कर ली जाये, यह मानना कि धीरे-धीरे ताने में मिलका सूत लगाना बन्द हो जायेगा, एक भ्रम है। एक-न-एक दिन तो इस कठिनाईका सामना करना ही होगा। कितनी ही कांग्रेस-संस्थाएँ तो इस