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टिप्पणियाँ

समस्यासे निपट भी चुकी है। हाथकता सूत बुनवाने में कोई दिक्कत नहीं है। यदि उसे अपने जिले में नहीं तो किसी दूसरे जिले में बुनवाया जा सकता है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि कांग्रेस-संस्थाओंको अर्व-खादी बुनना या उसकी बिक्री करना कतई बन्द कर देना चाहिए।

गोरक्षा

जिन लोगोंने मुझपर अखिल भारतीय गोरक्षा मण्डलके संचालनका भार डाला तथा जिन्होंने उसका सूत्रपात किया, वे इत्मीनान रखें कि मण्डलका काम-काज मेरे ध्यानसे बाहर नहीं रहा। पर हाँ, मैं इस विषयका जितना ही अध्ययन करता हूँ, उसकी कठिनाई उतनी ही अधिक महसूस कर रहा हूँ। जिस अर्थमें मैने गोरक्षा शब्दका प्रयोग किया है, उस अर्थमें इस प्रश्नके साथ न केवल भारतवर्षकी पशुजातिके कल्याणका और हिन्दू-धर्मकी सुकीतिका गहरा सम्बन्ध है, बल्कि बहुत हद तक देशके आर्थिक कल्याणका भी सम्बन्ध है। और दिनपर-दिन मेरे हृदयमें यह विश्वास भी दृढ़ होता जा रहा है कि इस समस्याका निपटारा खासकर हिन्दुओं द्वारा और आम तौरपर सारे भारतवासियों द्वारा इस मण्डलके तरीकोंको अपना लेने पर निर्भर करता है। इस उद्देश्यसे कि मैं गोरक्षा सम्बन्धी सब प्रकारके साहित्यका अध्ययन कर सकू या अपने साथियोंसे करवा सकूँ, मै भारत सरकार तथा प्रान्तीय सरकारोंके कृषि विभागों सहित तमाम स्थानीय संस्थाओं तथा पशु-समस्या में दिलचस्पी रखनेवाले लोगोंको निमन्त्रण देता हूँ कि उनके पास पशु-समस्या तथा दुग्ध-शालाओं एवं चमड़ेके कारखानोंके संचालनके सम्बन्ध में जो भी साहित्य और आँकड़े हों, वह सब मुझे सुलभ कराने की कृपा करें। मण्डलकी समितिको बैठक इस मासकी ३ तारीखको बम्बईमें होगी, जिसमें मैं मन्त्री तथा स्थायी खजांचीके नाम घोषित करने की आशा रखता हूँ। मैं यह आशा भी करता है कि जिन सज्जनोंने कुछ सदस्य बनानेका काम अपने जिम्मे लिया था, वे भी उस अवसरपर अपने अंगीकृत कार्यकी पूर्तिकी सूचना दे सकेंगे। जो साहित्य आदि मैंने मांगा है, वह इस पतेपर भेजा जा सकता है—मन्त्री, अ॰ भा॰ गोरक्षा मण्डल, सत्याग्रहाश्रम, साबरमती।

सरकारी संस्थाओं में कताई

श्रीरामपुरमें बंगाल सरकार द्वारा संचालित एक बुनाईकी शिक्षा संस्था है। इसकी व्यवस्था बंगाल सरकारका उद्योग-विभाग करता है। इस संस्थामें हाथ कताईकी बाकायदा तालीम दी जाती है। मैं इसकी प्रगति और शिक्षा-पद्धतिके विषयमें जाननेको बड़ा उत्सुक था। इसलिए मैंने उस संस्थाको देखने के लिए अधिकारियोंसे अनुमति मांगी, वह तुरन्त मिल गई। श्री हुगवर्फने मेरे साथ घूम-घूमकर मुझे उस संस्थाका प्रत्येक खण्ड दिखाया। वहाँ हाथकी बुनाई और रंगाई और कताई सबकी व्यवस्था थी। कताई केवल रुईसे ही नहीं बल्कि जूट, रेशम इत्यादिसे भी होती थी।

लेकिन यहाँ मैं केवल रुईकी कताईका ही जिक्र करना चाहता हूँ। संस्थाके कर्मचारीगण इस सम्बन्धमें करना बहुत-कुछ चाहते थे; परन्तु मुझे तुरन्त ही यह दिखाई