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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दे गया कि एक शिक्षण संस्थासे जिस तकनीकी योग्यता और मार्गदर्शनकी अपेक्षा की जा सकती है, उसका यहाँ अभाव था। मैं तो वहाँ इस आशासे गया था कि वहाँ कोई ऐसा कताई-विशेषज्ञ अवश्य मिलेगा जिसके हृदयमें इस कामके प्रति आस्था हो। मैंने वहाँ नवीनतम ढंगके चरखे देखने की भी आशा की थी। यह सब कहने में मेरा मकसद नाहक नुक्ताचीनी करना नहीं है, बल्कि यह सब मैं इस आशासे कह रहा हूँ कि निकट भविष्यमें वहाँ निश्चित रूपसे कुछ जरूरी सुधार हो सकेंगे। जो चरखे मैंने वहाँ देखे उनमें से कुछ की बनावट ठीक न थी। उनमें भी वैसे ही दोष थे जैसे अपने इस दौरे में मुझे अन्यत्र देखनेको मिले; और जिनके सम्बन्ध में इन्हीं स्तम्भोंमें चर्चा कर चुका हूँ। उन चरखोंमें से कुछ तो चलाते समय कर्कश आवाजतक करते थे। पूनियाँ भी बहुत अच्छे किस्मकी न थीं। ऐसी हालतमें अगर थोड़े ही समयके पश्चात् यह समाचार प्रकाशित हो कि हाय-कताईका यह प्रयोग असफल सिद्ध हो गया है तो आश्चर्यकी बात न होगी। किसी भी प्रयोगको जबतक सफल बनानेके लिए हर तरहकी कोशिश न कर ली जाये तबतक असफल घोषित नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए उस प्रयोगकी जिम्मेदारी किसी ऐसे व्यक्तिके हाथमें होनी चाहिए, जिसमें तमाम अपेक्षित योग्यताएँ हों और जिसके मनमें उसके प्रति श्रद्धा हो। यह भी मालूम हुआ कि इस संस्थामें शक्ति-चालित करघोंपर बुनाई करनेकी शिक्षा देना प्रारम्भ करनेका भी इरादा है। अभी तो यह हालत है कि इस संस्थाकी मौजूदा जरूरतें ही पूरी नहीं हो रही है और वह जैसे-तसे चल रही है। इसके सिवा, इसका उद्देश्य गृह-उद्योगोंको बढ़ावा देना है। अतः मेरे विचारसे वहाँ शक्तिचालित करघे शुरू करना जनताके पैसेका अपव्यय ही होगा। मैं यह बात शक्तिचालित करघोंमें मेरा विश्वास न होनेके कारण नहीं कह रहा हूँ, यह तो मैं इस खयालसे कह रहा हूँ कि इससे उस उद्देश्यकी पूर्ति नहीं होगी, जिसके लिए यह संस्था स्थापित की गई है। जो भी रकम इस संस्थाके निमित्त स्वीकार की जाये, उसका एक-एक पैसा गृह-उद्योगोंकी उन्नतिमें लगाया जाना चाहिए। इसलिए इस संस्थाकी सभी प्रवत्तियोंका उद्देश्य हाथ-कताई तथा उससे सम्बन्धित प्रक्रियाओंकी उन्नति करना और उनकी शिक्षा देना ही होना चाहिए।

मैंने वहाँ एक बात ऐसी पाई कि जिसका अनुकरण उन सभी राष्ट्रीय संस्थाओंमें किया जाना चाहिए जहाँ हाथ-कताई सिखाने या उसके विकासका काम किया जा रहा हो। श्री हुगवर्फ मुझे अपने निवास स्थानपर ले गये। वहाँ मैंने सूतकी मजबूती तथा उसके अंककी परीक्षा करनेवाले यन्त्र देखे। ऐसे यन्त्र भी देखे जिनकी सहायतासे सूतकी एकरूपता, रुईके रेशोंकी लम्बाई और बुने जानेके बाद कपड़ेकी मजबूतीकी भी जांच की जा सकती है। अगर इन सीधे-सादे यन्त्रोंमें से कुछ यन्त्र राष्ट्रीय शालाओंमें रखे जायें और ठीक तरहसे उनका इस्तेमाल किया जाये तो इससे कातनेवाले तेजीसे प्रगति कर सकेंगे और उनकी कताईकी जाँच भी होती रहेगी।

मैंने इस संस्थाके समीप ही एक और संस्था भी देखी। मैं उसका जिक्र करना भी जरूरी मानता हूँ। इसका खर्च भी मुख्यतया उक्त सरकारी संस्था द्वारा दिये