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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूसरे किसी प्रान्तमें है। बल्कि वह इससे भी ज्यादा करके दिखा सकता है। यह पूछनेपर कि बंगालके स्वराज्यवादियोंको उनकी विधान परिषद् सम्बन्धी कार्यनीतिके बारेमें आपने क्या सलाह दी है या आप क्या सलाह देना चाहेंगे, उन्होंने जवाब दिया कि मैंने तो उन्हें इतनी ही सलाह दी है कि वे पण्डित मोतीलाल नेहरूके नेतृत्वमें काम करें। अबतक गांधीजीने अपनी तकली निकालकर कातना शुरू कर दिया था।

अगला प्रश्न था : "देशमें वर्तमान निष्क्रियताको स्थितिको दूर करने के लिए आप क्या उपाय बतायेंगे?" उन्होंने बड़े प्यारसे अपनी तकलीकी ओर देखा और उसपर एक महीना लम्बा तार निकालते हुए और प्रफुल्ल मुस्कानके साथ कहा :

उपाय तो मैं बता ही चुका हूँ। कातो, कातो, कातो, तबतक कातते जाओ जबतक निष्क्रियता दूर न हो जाये। मैंने यही उपाय सुझाया है और जबतक कोई दूसरा या वैकल्पिक उपाय सुझाकर इसके मुकाबले उसका औचित्य सिद्ध नहीं कर दिया जाता तबतक इसी उपायसे काम लेना होगा।

हमारे प्रतिनिधिने इस बातकी ओर ध्यान आकृष्ट किया कि कई स्थानोंपर, विशेषतया महाराष्ट्रमें ग्राम पंचायतें बनानेका सुझाव रखा गया है और यह सुझाव भी दिया गया है कि खादोप्रचारके लिए सहकारी समितियाँ बनाई जायें, जो ग्रामसंस्थाओंके साथ मिलकर काम करें।

गांधीजीने कहा :

जहाँ उनका पूर्ण आत्म-निर्भरताकी भावनासे सुचारु संचालन सम्भव हो सके, वहाँ तो उनको गठित करना बिलकुल ठीक है। जहाँ आत्म-निर्भर बननेकी भावना है अगर वहाँ अभीतक कोई दूसरा संगठन नहीं है तो मैं समझता हूँ कि ऐसा संगठन वहाँ अच्छा ही रहेगा। पर मुझे डर इस बातका है कि कहीं ऐसा न हो कि इनमें से बहुत-सी संस्थाएँ लोगोंको अधिकारियों या उनके कारिन्दोंपर निर्भर बनाने का एक और साधन बन जायें। समस्त राष्ट्रको एकताके सूत्रमें बाँधने और उसमें शक्तिका संचार करने के लिए हमें आवश्यकता है किसी ऐसे एक सर्वथा मान्य धन्धेकी, जिसे सभी बिना किसी दूसरेकी सहायताके कर सके और वह धन्धा है सार्वजनिक कताई।

इसके बाद उनसे पूछा गया, "क्या आपको हिन्दु-मस्लिम तनावके कम होने के कोई आसार—कोई छिटपुट आसार भी—नजर आते हैं?"

उन्होंने गम्भीरतापूर्वक उत्तर दिया :

नहीं, स्थिति बदतर ही होती जा रही है, लेकिन एक अवस्था ऐसी आयेगी जब उसमें सुधार अवश्य होगा। मुझे डर है कि इस बढ़ते हुए तनावका अन्त कहीं किसी भारी विस्फोटके रूपमें न हो; वैसे हम कोशिश तो यही करेंगे कि विस्फोट होनेपर भी हिंसा यथासम्भव कम हो। पर उसके बाद प्रतिक्रिया यही होगी कि दोनों जातियाँ एक हो जायेंगी। यदि इस बीच लोग किसी सर्वसामान्य रचनात्मक कार्यक्रममें लगे रहें तो विस्फोटके दौरान हिंसा-वृत्ति कुछ दबी रहेगी और साथ ही जब एकता स्थापित होगी तब इससे वह अधिक सुदृढ़ बनेगी।