पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/१९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६३
सन्देश : दादाभाईकी शताब्दीके अवसरपर


आपके अनुसार कांग्रेसको लॉर्ड बर्कनहेडको क्या जवाब देना चाहिए? इसके उत्तरमें गांधीजीने छूटते ही कहा :

मैंने जो दिशा सुझाई है, उस दिशामें और भी ज्यादा काम करना और तेजीसे काम करना।

हमारे प्रतिनिधिने पूछा, "हम ऐसा क्यों न करें कि उनकी बात मानकर मजेमजे में उनके सामने एकाएक स्वराज्यको योजना पेश करके उन्हें चकित कर दें।

यदि उन्होंने यह प्रस्ताव हमारे सामने खिलाड़ीकी सच्ची मनोभावनासे रखा होता तो हम उसे स्वीकार कर सकते थे, लेकिन चूंकि उनमें हृदय-परिवर्तनका कोई सच्चा लक्षण नहीं दिखाई देता इसलिए मुझे तो यही लगता है कि हमारी किसी योजनापर विचार करनेका उनका प्रस्ताव हमें फंसाने के लिए एक जाल साबित हो सकता है और मुझे तो उसमें फंसना मंजूर नहीं।

यह पूछनेपर कि क्या आप प्रतिनिधि नेताओंका एक ऐसा सम्मेलन नहीं बुलायेंगे जो सब दलोंमें एकता स्थापित करने के उपायोंपर पुनः विचार करे, उन्होंने उत्तर दिया :

इसका उत्तर तो में बहुत पहले दे चुका हूँ। इस विषयपर आजके 'यंग इंडिया' में भी मैंने विचार किया है।[१] अनौपचारिक रूपसे प्रयत्न तो किये ही जा रहे है, पर अभी बाकायदा एक सम्मेलन बुलानेका समय नहीं आया है। इस समय निःसन्देह हर दल एकता चाहता है, पर अपनी-अपनी शापर। ऐसी हालतमें कोई सम्मेलन सफल नहीं हो सकता। ज्यों ही मुझे लोगोंमें देशकी वर्तमान जरूरतोंके आगे अपने व्यक्तिगत या दलगत विचारोंकी परवाह न करनेकी एक आम प्रवृत्ति दिखाई देगी त्यों ही मैं सबसे आगे बढ़कर ऐसा सम्मेलन बुलाऊँगा।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ४-९-१९२५
 

८४. सन्देश : दादाभाईकी शताब्दीके अवसरपर

दादाभाईको हम भारतका पितामह कहा करते थे; वे इस आदरपूर्ण सम्बोधनके पात्र भी थे। भारतके जनसाधारणकी घोर गरीबीकी समस्याकी ओर पहले-पहल दादाभाईने ही हमारा ध्यान आकृष्ट किया। भारतीय जनताकी गरीबी बढ़ती ही जा रही है, इस तथ्यका उद्घाटन करके मानो उन्होंने वर्तमान शासन पद्धतिकी बुराईकी जड़को ही प्रकट कर दिया। इसलिए मेरे विचारसे तो उनकी आगामी शताब्दीको मनानेका सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि गरीबीकी समस्याको दूर करने के लिए हम कुछ ठोस प्रयत्न करें। यह बुराई सन्तोषजनक ढंगसे तभी दूर की जा सकती है जब हम सब चरखे और खद्दरको अपना लें। इसीलिए मैंने निःसंकोच भावसे यह सुझाव दिया है कि उनकी शताब्दी मनाने के लिए हम चरखा और खद्दरके लिए चन्दा

  1. देखिए 'टिप्पणियाँ' ३–९–१९२५ का उपशीर्षक 'सब दलोंको क्यों नहीं निमंत्रित कर रहा हूँ?'