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भाषण : मजदूर-संघके स्कूलोंकी सभामें

विषयमें जबतक उदासीनता रहेगी, तबतक यही समझना चाहिए कि गोशालाका पूरा उपयोग सम्भव नहीं है। एक भी गाय या बैलका असमयमें मरना या उसका बाहर भेजा जाना हमारे लिए शर्मकी बात है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि गोशालाओंकी मार्फत यह काम सहज ही साधा जा सकता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ६–९–१९२५
 

८८. भाषण : मजदूर-संघके स्कूलोंकी सभामें[१]

६ सितम्बर, १९२५

मैने आपके कार्यकी रिपोर्ट सुनी। इसके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ। अपनी यात्राओंमें में स्कूलोंकी प्रवृत्ति भी देख लेता हूँ। कहाँ किस-किस वर्णके बालक पढ़ते हैं और उन्हें किस तरहकी शिक्षा दी जाती है, सो देखता हूँ। जितनी सुव्यवस्था मैंने इन स्कूलों में देखी है, उतनी और कहीं नहीं देखी। इसमें मेरा किसी तरहका मोह है सो बात नहीं। ऐसा होना सम्भव है, इसलिए अपनी सराहनामें कुछ कमी कर देता हूँ। फिर भी मैं अपनी इस रायपर स्थिर रहने के लिए विवश हूँ। मैंने आपको जो बधाई दी है, सो आपको खुश करने के लिए नहीं, बल्कि इसलिए दी है कि आप उसके अधिकारी है। मेरा धर्म आपके स्कूलको बधाई देना कम, और आपका दोष बतलाना ज्यादा है। मैं स्वच्छताके नियमोंका पालन करवानेके आपके प्रयत्नको देख पा रहा हूँ, लेकिन मैं चाहूँगा कि आप इसे मेरी आँखोंसे देखें। उस कन्याके नाखूनमें मैल देखकर मुझे आघात पहुँचा—इसमें अस्वच्छता है, इसमें आलस्य है। जबतक प्रत्येक बालकके नाखन, दाँत आदि नहीं देखे जाते तबतक हाजिरीपत्रक पूरा हुआ नहीं माना जा सकता। नाखूनों और दाँतोंके द्वारा हम जितनी बीमारियाँ खाते या पीते है उतनी अन्य किसी तरह नहीं। नाखूनों और दाँतोंकी अस्वच्छता हमारे रोगोंका सबसे बड़ा कारण है। नाखून और दाँतकी स्वच्छता अत्यन्त उपयोगी है और इसका पालन करना आसान है। इसमें आप "यथाशक्ति" की गुंजाइश न रखें-नाक और आँखकी स्वच्छता इससे निचले दर्जेकी है। उनका ध्यान बालक स्वयं ही रखेंगे। बालोंकी स्वच्छतापर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

तकलीके कामके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ। ऐसा लगता है कि इस विषयमें इतनी प्रगति किसी राष्ट्रीय स्कूलने नहीं की है। तकलीके आपके अनुभव साथ मैं अपना अनुभव जोड़ता हूँ। स्कूलमें चरखा दाखिल करनेका प्रयास ही गलत था। तकलीमें जो शक्ति है वह चरखेमें नहीं है। चरखेका सर्वथा नाश हो जाये तो भी विदेशी कपड़ेका बहिष्कार करने की शक्ति तकलीमें है। चरखेमें तो बड़ी परेशानी है—उसकी कोई एक चीज सुधारिये, तबतक दो बिगड़ जाती है। चरखा झोंपड़ीमें

  1. यंग इंडिया, १०–८–१९२५ में भी इस सभाकी रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी।