७. तो फिर जब ऐसे प्रश्न पैदा हों तब क्या हम प्रचारके लिए जी खोलकर पैसा खर्च करें?
नहीं, जी खोलकर नहीं। ठोस काम खुद ही अपना प्रचार कर लेता है। वाइकोममें अधिकांश द्रव्य रचनात्मक कार्योंमें खर्च किया गया है।
८. क्या आप निकट भविष्यम अस्पश्यताके प्रश्नको और भी जोरदार ढंगसे उठानेका विचार रखते हैं?
मैने तो उसे आज भी यथासम्भव ज्यादासे-ज्यादा जोरदार ढंगसे ही उठा रखा है। जहाँ-कहीं सम्भव है, हम उनके लिए पाठशालाएँ खोलने, कुएँ खुदवाने, मन्दिर बनवाने आदिका पूरा प्रयत्न कर रहे हैं। पैसेके अभावमें काम रुकता नहीं है। चूंकि इन कार्योंका अखबारोंमें कोई विज्ञापन नहीं होता इसलिए आप शायद यह समझते है कि उनके लिए कुछ किया ही नहीं जा रहा है।
९. बेलगाँव-प्रस्तावके अनुसार तो ऐसा कोई भी स्कूल राष्ट्रीय नहीं माना जा सकता जिसमें पंचम लड़के न लिये जाते हों!
बेशक ऐसे स्कलोंको राष्ट्रीय नहीं माना जा सकता।
१०. तो क्या आपका कहना यह है कि ऐसे स्कूल यदि राष्ट्रीय विद्यालय विषयक अन्य सब शतें पूरी करते हों तब भी इन्हें कांग्रेससे सहायता न मिलनी चाहिए?
हाँ, मेरा तो यही कहना है। ऐसे स्कूलोंको कोई सहायता नहीं मिलनी चाहिए।
- [अंग्रेजीसे]
- यंग इंडिया, १०–९–१९२५
९४. पत्र: जेठालाल मन्सूरको
भाद्रपद बदी ८, ८१ [१० सितम्बर, १९२५]
भाई जेठालाल,
तुम्हारा पत्र मिल गया है। तुम मन्दिरके[१] लिए चन्दा तुरन्त कर डालो। रामजीभाईसे[२] कितनेकी आशा रखते हो? उनके कुटुम्बियोंने आभूषण भी तो दिये है। मन्दिर बननेमें जो देर हो रही है वह वहींकी ढिलाई है। पुजारी कौन होगा, यह जानना भी जरूरी होगा।
मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्
जराती पत्र (एस॰ एन॰ १११३५) की माइक्रोफिल्मसे।