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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गरीबी तो सब अच्छी तरह जानते हैं। मेरा खयाल है कि उड़ीसा और एक-दो अन्य प्रान्तोंको छोड़कर बिहार देशका सबसे निर्धन प्रान्त है। एक समय ऐसा था, जब बिहार हाथ-कते सूतका हाथबुना उत्तम कोटिका कपड़ा बाहर भेजा करता था। बंगालकी तरह बिहार भी अपने बढ़िया कपड़े के लिए प्रसिद्ध था। पर आज उसी बिहारके लोग अपनी भूख मिटानेका कोई उपाय नहीं जानते। चरखको अपनानके सिवाय उनके लिए दूसरा कोई रास्ता नहीं है। आज असम और कलकत्तामें हजारों बिहारी हैं, जो वहाँ अपनी आजीविका कमा रहे हैं। हम उन्हें वहीं छोड़ दें, यह ठीक नहीं है। आदमीका जन्म सिर्फ पैसा बटोरने के लिए नहीं हुआ है। जो अपनी आत्माके कल्याणकी अवज्ञा करता है, वह अपना बड़ा अहित करता है। असम और कलकत्ते में रहनेवाले इन बिहारियोंके चरित्रके बारे में तो आप मुझसे ज्यादा ही जानते होंगे हम उनका अगर विचार न करें तो भी लाखों बिहारी वहाँ भी ऐसे हैं जो नहीं जानते कि दो जूनका भोजन किसे कहते हैं। वे यह भी नहीं जानते कि अपनी आजीविका कैसे कमायें।

मैं तो उसी दिनसे बिहारी हो गया हूँ जिस दिन मैंने चम्पारनमें काम शुरू किया था। यदि आपको मालूम न हो तो मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि चम्पारनमें स्त्रियाँ प्रतिदिन पाँच पैसे भी नहीं कमा पाती थीं।

पुरुषों के लिए छः पैसे या दो आना ही बहुत ज्यादा समझा जाता था। आज मजदूरी बढ़ जानेपर भी इन लोगोंको उसमें से दस्तूरी देनी पड़ती है। उनकी हालत बहुत-कुछ पहले-जैसी ही है। यदि उन्हें चरखा दे दिया जाये तो उसका क्या परिणाम होगा, इसका अनुमान तो अर्थशास्त्री लोग स्वयं लगा देखें। पर चरखेको फिरसे घरघरमें दाखिल करवाना तो पढ़े-लिखे लोगोंका ही काम है।

यह मानो हुई बात है कि साधारण जनता प्रतिष्ठित लोगोंका अनुकरण करती है। आप गांववालोंके मन में चरखेको अपनानेका उत्साह तभी पैदा कर सकेंगे जब आप स्वयं गांवों में जाकर चरखका प्रचार करें और खुद चरखा चलायें। यदि आप चारते हैं कि बिहारकी गरीबी दर हो यदि आप बाढ़, अकाल या किसी अन्य देवी प्रकोपोंके समय बेरोजगार लोगोंको कुछ काम देना चाहते हैं तो आपको खुद चरखा चलाना चाहिए और लोगोंको इसकी शिक्षा देनी चाहिए। पर इतना ही करना काफी नहीं है।

आपको विदेशी तो क्या, बम्बई और अहमदाबादकी मिलोंके कपड़ेका मोह भी त्याग देना पड़ेगा। जबतक आप ऐसा नहीं करते, आप कोई ठोस सफलता प्राप्त नहीं कर पायेंगे। यदि आपमें आत्मसम्मानकी भावना है तो आपको सिर्फ बिहारमें बने कपड़ेका उपयोग करना चाहिए और बम्बई और अहमदाबादको मिलोंका कपड़ा नहीं खरीदना चाहिए।

यदि आप सच्चे हृदयसे भारतका कल्याण चाहते है, यदि आप सच्चे हृदयसे बिहारकी सेवा करना चाहते हैं तो आपको चरखेका यह प्रारम्भिक मन्त्र समझना होगा।