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प्रमाणिकता

गुजरातकी स्थिति ऐसी नहीं है, क्योंकि उसके संचालक अन्त्यज सावधानीसे अपना काम कर रहे हैं और सदा सूलीपर चढ़े रहते हैं, सदैव जागृत रहते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १३–९–१९२५
 

९८. प्रामाणिकता

हमारे सार्वजनिक कार्यमें धीरे-धीरे मलिनता प्रवेश कर गई है। एक विद्वान् सज्जनने टीका की है कि जबसे कांग्रेसको एक करोड़ रुपया मिला है, हमारा सार्वजनिक जीवन विकृत हो गया है। इस टीकामें विष बहुत ज्यादा भरा हुआ था; लेकिन उसमें अमृतकी बूँद भी थी। कांग्रेसके कोष में पैसा आनेसे उसमें लालच आया, शिथिलता आई। जो पैसेसे हो सकता है उसके लिए मेहनत क्यों करें? दुर्गुण कोई ढोल बजाकर नहीं आते। वे तो चोरों अथवा विषैले जन्तुओं-जैसे है। वे गुप्त रूपसे और बिना बताये आते हैं। निर्दोष मेमनेके समान वे हमारी गोदमें आकर बैठ जाते हैं और लाख कोशिश करनेपर भी नहीं जाते। वे हमारी नजर बचाकर हमें पीछे खींचते हैं। हमारे अनजाने ही दोष हममें प्रवेश कर गये हैं। हमें इसके प्रति सावधान रहना है।

अनेक लोगोंने [प्रान्तीय] कमेटीसे पैसे उधार लिये और उन्हें वापस नहीं चुकाया। कितने ही लोगोंने खादी मण्डलसे खादी ली है। इसके पैसे भी नहीं चुकाये गये। यह बात शिथिलताकी परिचायक है और परोक्ष रूपसे वचन-भंग भी है। यदि यही सुविधा हमने व्यापारिक पद्धतिसे प्राप्त की होती और फिर समयपर पैसे न चुकाये होते तो इसके लिए हम दण्ड भोगते—जेलमें होते। लेकिन हम लोग यह मान बैठे जान पड़ते हैं कि कमेटी आदि सार्वजनिक संस्थाओंसे ली गई रकमें वापस करने में व्यापारिक पद्धतिका अनुकरण करनेको आवश्यकता नहीं है।

वस्तुतः देखा जाये तो स्थिति यह होनी चाहिए कि कमेटीसे ली हुई रकमको साखपर लिया हुआ कर्ज समझा जाना चाहिए। अंग्रेजीमें इसे 'डेट आफ ऑनर' अथवा दूसरे शब्दोंमें केवल सत्यकी साखपर मिला पैसा कहते हैं। व्यापारियोंका, संसारका यह कायदा है कि ऐसे पैसेकी अदायगीको प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वह व्यक्ति अधिक सावधानी इसे अदा करनेके सम्बन्धमें बरतता है। इसके अलावा एक और भी नियम है; वह यह कि पहले राजाका कर चुकाया जाये, बादमें व्यक्तिगत कर्ज। किसी संस्थासे ली हुई रकमको वापस चुकानेको भी कर चुकाने-जैसा मानना चाहिए। यदि ऐसा न हो तो संस्थाएँ काम ही नहीं कर सकती। अपनी शिथिलताके लिए हम अनेक बहाने बतायेंगे, लेकिन वे सब निरर्थक होंगे। जिस अपराधके लिए संसार हमें दण्ड देता है, यदि हम उसे नहीं करते तो यह कोई अनोखी बात नहीं है; पुण्यकी बात तो है ही नहीं। हमारे सत्यकी परीक्षा इसमें नहीं होती। जो व्यक्ति ऐसा अपराध करनेसे बचता है जिसका केवल ईश्वर ही साक्षी है, वही खरा व्यक्ति