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भाषण : पुरुलियाकी महिला सभामें

विचारना है कि लोग अपने-आप क्या कर सकते है। लोगोंको नीचे लिखे नियम अपनी खुशीसे पालन करने चाहिए :

  1. दोनों क्रियाएं मुकर्रर की हुई जगहपर ही की जानी चाहिए।
  2. गलियों में जहाँ-तहाँ पेशाब करने बैठ जाना भी बुरा गिना जाना चाहिए।
  3. जहाँ पेशाब किया हो उस स्थानको पेशाब करने के बाद सूखी मिट्टीसे अच्छी तरह ढंक देना चाहिए।
  4. पाखाने बिलकुल साफ रहने चाहिए। पानी गिरनेकी जगह भी स्वच्छ रहे। हमारे पाखाने मानो हमारी निन्दा करते है। उनसे स्वच्छताके नियमोंका उल्लंघन प्रकट होता है।
  5. सारा मैला खेतों में पहुँचना चाहिए।

इन तमाम नियमोंका पालन कैसे हो सकता है? उत्तर यह है कि शिक्षा द्वारा। जबतक लोग नियमोंको समझ न जायेंगे, उनका प्रयोजन जबतक वे न जानेंगे, तबतक कायदा-कानून फिजूल है। कानून तो थोड़े से मनुष्योंके लिए हो सकता है। अधिकांश लोग जबतक कानून न समझें अथवा न माने तबतक उसके अनुसार दी जानेवाली सजाका कुछ भी उपयोग नहीं होता।

इस शिक्षाके लिए अक्षरज्ञानकी जरूरत नहीं। 'जादू की लालटेन' द्वारा तथा भाषणों द्वारा गन्दगीसे पहँचनेवाली हानियोंका और खादके लिए मैलेको बचाने के भोंका ज्ञान लोगोंको कराना चाहिए। भाँति-भांतिके साधन बताने चाहिए।

पर सबसे बढ़िया शिक्षा तो स्वयं करके दिखाना है। इसलिए जो लोग समझ गये है उन्हें स्वयं इन नियमोंपर अमल करके दूसरोंके सामने उदाहरण पेश करना चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १३–९–१९२५
 

१००. भाषण : पुरुलियाकी महिला सभामें[१]

१३ सितम्बर, १९२५

महात्माजीने मानपत्रका उत्तर देते हुए कहा कि आज इतनी सती-साध्वियोंको यहाँ इस सभामें आया देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। हमारे धर्ममें प्रातःकाल सतियोंका स्मरण करने और इस तरह उनका आदर करने की शिक्षा दी गई है। सीता और दमयन्ती अपने शरीर, मन और कार्योंकी पवित्रताके कारण प्रातःस्मरणीया है, आप भी उनकी तरह बनें। भारतको स्त्रियोंसे मेरी यही प्रार्थना है कि वे सीताके समान पवित्र बनें। जबतक वे ऐसा नहीं करतीं, हमें स्वराज्य प्राप्त नहीं हो सकता, चाहे उसके लिए भारतको स्त्रियाँ या पुरुष कितना ही प्रयत्न क्यों न करें। मेरे

  1. सुबह आठ बजे हुई इस सभामें पुरुलियाकी स्त्रीयोंकी ओरसे गांधीजीको मानपत्र भेंट किया गया था।