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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए स्वराज्यका अर्थ है रामराज्य या धर्मराज्य और वह हमें तभी मिल सकता है जब भारतको स्त्रियाँ सीताके समान बन जायें। सीता देवी किसी दुःखको दुःख नहीं मानती थी, वह निःसंकोच अग्निमें प्रवेश कर गई। यदि आप उनके चरण-चिह्नोंपर चलें तो आप भी उनके समान बन सकती हैं।

इसके बाद महात्माजीने उनसे कताई करने और खादी पहननेका अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि सीताके समय स्त्रियाँ तो क्या, कोई पुरुष भी विदेशी कपड़ा नहीं पहनता था। जैसे हर घरमें चूल्हा होता है, उसी तरह कमसे-कम एक चरखा भी रहता था और घरको स्त्रियाँ कताई करती थीं। आपमें से जो लोग खद्दर खरीद सकते हैं, उनसे मेरा अनुरोध है कि वे ऐसा करें। लेकिन साथ ही मेरा यह भी अनुरोध है कि आप अपने पीड़ित भाई-बहनोंके लिए कताई करें और अखिल भारतीय खादी मण्डलको सूत भेजें।

अन्तमें उन्होंने सभीसे अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारक कोषमें चन्दा देनेकी अपील की और कहा कि देशबन्धुको अन्तिम इच्छाके अनुसार यह रकम खादी-प्रचार और ग्राम-संगठनके कार्य में लगाई जायेगी।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, १५–९–१९२५
 

१०१. भाषण : अन्त्यजोंकी सभा, पुरुलियामें

१३ सितम्बर, १९२५

जिन भाइयों और बहनोंने हाथ उठा[१] कर बताया है कि हिन्दू उन्हें अस्पृश्य मानते हैं, उन्हें मैं बता देना चाहता हूँ कि मैं भी डोम हूँ। मुझे भंगी या डोम जो कहें, मैं वही हूँ। मेरा दृढ़ विश्वास है कि मैला उठाने-मात्रसे कोई आदमी बुरा या घृणित नहीं बन जाता। माँ सदैव अपने बच्चेका मैला साफ करती है, पर समाज उसे अस्पृश्य नहीं मानता। अस्पृश्य तो वह है जो बुरा काम करे, जिसका हृदय अपवित्र हो। मैं अपने डोम भाइयों और बहनोंसे तथा दूसरी अस्पृश्य जातियोंके लोगोंसे यही अनुरोध करना चाहता हूँ कि वे हिन्दुओंसे या हिन्दू धर्मसे घृणा न करें। डोमों तथा अन्य अस्पृश्य जातियोंके साथ जो दुर्व्यवहार होता रहा है, हिन्दू लोग उसे दूर करनेके उपाय ढूँढ़ने और इस दुर्व्यवहारके कारण इन जातियोंकी जो हानि हुई है उसकी पूर्ति करनेका भरसक प्रयत्न कर रहे हैं। इस समय देश-भरमें कितने ही ऐसे हिन्दू हैं जिन्होंने अपना जीवन अन्त्यजोंकी दशा सुधारनेके लिए अर्पित कर दिया है।

  1. हिन्दीमें लिखे मानपत्रका उत्तर देनेसे पहले गांधीजीने उपस्थित अस्पृश्योंको हाथ उठानेके लिए कहा था ताकि वे जान सकें कि सभामें कितने अस्पृश्य लोग मौजूद है। मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।