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टिप्पणियाँ

दिया है। आधुनिक शिक्षा-पद्धतिने उस प्राचीन क्रमको बदल दिया है जिसके फलस्वरूप शिक्षा देने और ग्रहण करने की प्रक्रिया नीरस बन गई है। राष्ट्रीय पाठशालाके विद्यार्थियोंको वही प्राचीन पद्धपि अपनानी चाहिए; वे जो शिक्षा पाते हैं उसके बदले में उन्हें भी कुछ देना चाहिए। वे गुरुके पास 'सूत्रपाणि' आये अर्थात् इस प्राप्त विद्याका बदला सूत देकर या चरखा चलाकर चुकायें। विद्यार्थियोंको चाहिए कि वे कताई करें और इस प्रकार विद्या प्राप्तिके बदलेमें राष्ट्रकी सेवा करें।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, १६–९–१९२५
 

१०४. तार : इलाहाबादकी रामलीला समितिके मन्त्रीको

राँची
[१७ सितम्बर, १९२५ या उससे पूर्व][१]

खेद है दोनोंमें से किसी भी पक्षपर मेरा कोई प्रभाव नहीं है।[२]

गांधी

[अंग्रेजीसे]
लीडर, २०–९–१९२५
 

१०५. टिप्पणियाँ
भारतीय हर्कुलिस और ब्राह्मण-वर्ग

साबरमतीमें मेरे स्वल्पकालिक निवासके दरम्यान इस माहकी ८ तारीखको सुबह ४ बजे प्रो॰ राममूर्ति मुझसे मिलने आ गये। मिलनेका समय पहलेसे ही तय हो गया था। पाठक जानते होंगे उन्हें 'भारतीय हर्कुलिस' कहा जाता है; और अपना यह नाम उन्हें अच्छा भी लगता है। उन्होंने आधुनिक ब्राह्मणोंकी दुष्टताके विषयमें मुझसे दिलचस्प बातचीत की और इस प्रसंगमें मैंने उनसे जो सवाल किये, उनसे उन्हें बड़ा सन्तोष हुआ दिखाई दिया और कुछ क्षणोंके लिए हम दोनों अब्राह्मणोंको मानो अपने बीच आत्मीयताका अनुभव हुआ और अपनी कल्पनामें उन्होंने शायद यह भी देखा कि समय आ रहा है जब भारतके अब्राह्मण मिलकर ब्राह्मणोंके खिलाफ जिनकी कि संख्या, उनके कथनानुसार बहुत थोड़ी ही है, युद्ध छेड़ देंगे।

  1. साधन-सूत्रके अनुसार यह तार १७ सितम्बरको मिला था।
  2. यह स्पष्ट नहीं है कि तार किस सम्बन्धमें भेजा गया था। लेकिन संदर्भसे ऐसा लगता है कि दशहराके त्यौहारके सिलसिलेमें भेजा गया होगा।