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क्या गांवोंके नवयुवक कार्यकर्ता चुनावको सरगर्मी में भाग लें और स्वराज्यदलवालोंके लिए मत प्राप्त करने में योग दें?

परिवर्तनवादियोंको छोड़कर अन्य लोगोंके लिए मैं वैसा सम्भव नहीं मानता। उदाहरणार्थ गाँवोंमें काम करनेवाले जो कार्यकर्ता खादीका कार्य कर रहे हैं और जिनका झुकाव राजनीतिकी ओर नहीं है, वे अपने आपको चुनावोंकी सरगर्मीसे दूर रखेंगे और अपने काममें उसके कारण बाधा नहीं पड़ने देंगे।

स्वराज्यदलवाले ग्राम बोर्डों, नगरपालिकाओं तथा स्थानीय बोर्डों आदिपर अधिकार जमाना चाहेंगे। ऐसी हालतमें खादी कार्यकर्ताओंको क्या करना होगा?

स्वराज्य दलवालोंसे भी यह उम्मीद रखता है कि वे खादीका कार्य करेंगे। उनके और अपरिवर्तनवादियोंके बीच अन्तर केवल इतना ही है कि स्वराज्यदलवाले खादी-कार्यके साथ-साथ विधान सभा सम्बन्धी कार्य भी करेंगे। फलतः वे खादीके प्रेमी होते हुए भी विधान सभा सम्बन्धी कार्यको पहला स्थान देंगे। अपरिवर्तनवादियोंके पास तो खादी तथा अन्य रचनात्मक कार्योंके सिवा कुछ है नहीं। दोनों अपने-अपने रास्ते जा सकते हैं और दोनोंसे यह उम्मीद है कि वे एक-दूसरेकी जहाँतक उनकी आत्मा गवाही दे, ज्यादासे-ज्यादा सहायता करेंगे।

जब चुनावमें एक ओर ब्राह्मण और दूसरी ओर अब्राह्मण उम्मीदवार एक-दूसरेके मुकाबिले खड़े होंगे तब मेरी क्या स्थिति होगी? ऐसी हालत में अगर मैं आपके स्थानपर होऊँ तो ईर्ष्या, द्वेष और कटुता मिटाने के सिवा उसमें और कोई दिलचस्पी नहीं लूंगा। आपने कहा है कि अपरिवर्तनवादी स्वराज्यवादियोंका विरोध न करें, इतना ही नहीं बल्कि वे सहायता भी करें। यह सहायता किस हदतक दी जानी है?

इस प्रश्नका उत्तर में पहले ही दे चुका हूँ। जब मित्रता होती है तब हम अपने खास कामको कोई बाधा न पहुँचाकर भी अनेक प्रकारसे सहायता कर सकते है। मगर किस हदतक सहायता करनी है, यह तो हरएक व्यक्ति अपने लिए स्वयं ही तय करे। यह सहायता तो स्वेच्छापूर्वक दी जानी है, अतः इसके बारेमें दूसरा व्यक्ति निर्देश नहीं कर सकता, दबाव डालने की बात तो है ही नहीं। यहाँ दल-सम्बन्धी अनुशासनका प्रश्न नहीं है। मेरी राय एक व्यक्तिकी राय है। मेरे खुदके आचरणसे इस सहायताका अर्थ ज्यादा अच्छी तरह समझमें आ सकता है।

आपने स्वराज्यवादियोंकी सहायता करने का जो निश्चय किया है वह महज जरूरतको देखकर या यह समझकर कि भारतवर्षको विधान सभाओंसे कुछ लाभ पहुँचेगा?

इसमें एक तीसरा कारण भी हो सकता है। मैं यह नहीं मानता कि वर्तमान दशामें विधान सभाएँ भारतवर्षको लाभ पहुँचा सकेंगी; और न मैं स्वराज्यवादियोंकी जो थोड़ी-बहुत सहायता कर रहा हूँ वह जरूरत देखकर कर रहा हूँ। मुझे विधानसभा सम्बन्धी कार्यक्रम नापसन्द है, मगर मैं देखता हूँ कि भारतवर्षके अधिकांश पढ़े-लिखे लोग

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