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अमेरिकाके मित्रोंसे


यदि आप अपना सन्देश सिर्फ पूर्वकी ही भाषामें और केवल भारतकी वर्तमान विशिष्ट परिस्थितियोंको ही दृष्टिमें रखकर प्रस्तुत करते रहे तो क्या इस बातका भारी खतरा नहीं है कि जो अनावश्यक है वह मूल वस्तु मान ली जाये—यानी कि कुछ बातें जो भारत की विशेष परिस्थितियोंपर ही लागू होती है उन्हें सारे संसार और सभी परिस्थितियोंके लिहाजसे भी महत्त्वपूर्ण मान लिया जाये?

लेखकका बताया खतरा मेरे ध्यानमें है; पर वह अनिवार्य मालूम होता है। मैं एक ऐसे वैज्ञानिककी स्थितिमें हूँ जिसका प्रयोग अभी बहुत-कुछ अधूरा है और इसलिए जो अभी उस प्रयोगके बृहत् परिणामों और उनके बृहत्तर अनपरिणामोंको सर्वसुबोध भाषामें व्यक्त करने में असमर्थ है। इसलिए इस प्रयोगको लेकर गलतफहमी होने की जोखिम मुझे उठानी ही पड़ेगी। यह गलतफहमी तो बराबर ही रही है और अब भी शायद बहुत जगह मौजूद है।

पूर्वोके साथ-साथ पश्चिमी सभ्यताके सन्दर्भमें आपके सन्देशका क्या अर्थ है, दुनियाको समझाने के लिए क्या आपको अमेरिका (जो कि अपने अनेक दोषोंके बावजूद शायद दुनियाको सभी जीवित कोमोंसे आध्यात्मिकताको ओर अधिक झुका हुआ है) नहीं आना चाहिए?

लोग सामान्यतः मेरे सन्देशको उसके परिणामोंसे समझेंगे। उस सन्देशको लोग सुनें और उसका उनपर प्रभाव हो, इसका सबसे छोटा रास्ता फिलहाल शायद यही होगा कि उसके परिणामोंको ही उसका प्रचार करने दिया जाये।

उदाहरणार्थ, क्या आपको प्रेरणासे प्रभावित पश्चिमी देशोंके निवासी चरखा कातें और उसका प्रचार करें?

पश्चिमी लोगोंके लिए चरखा कातने और उसका प्रचार करनेकी आवश्यकता तो नहीं है, परन्तु हाँ, यदि वे भारतके साथ अपनी सहानुभूति प्रकट करने, या अपनी संयम-साधनाके लिए, अथवा चरखेकी गृह-उद्योग सम्बन्धी मूलभूत विशेषताओंको कायम रखते हुए उसे और अधिक उपयोगी बनाने में अपनी आविष्कारक बुद्धि-शक्तिका प्रयोग करने के लिए उसे चलायें तो बात दूसरी है। परन्तु चरखेका सन्देश तो अधिक व्यापक है। उसका पैगाम है—सादा जीवन, मानव-जातिकी सेवा करना, औरोंको हानि न पहुँचाते हुए जिन्दगी बसर करना, धनी और निर्धन, मजदूरों और मिल-मालिकों, राजा और रंकमें अटूट [प्रेम] सम्बन्ध उत्पन्न करना। स्वभावतः यह बृहत्तर सन्देश सबके लिए है।

रेलगाड़ियों, डाक्टरों, अस्पतालों तथा आधुनिक सभ्यताके अन्य अंगोंको जो निन्दा आपने की है क्या वह तात्त्विक और अपरिवर्तनीय है? क्या हमें पहले अपनी आत्मिक शक्तिका इतना विकास न कर लेना चाहिए कि जिससे यन्त्र-साधनोंको तथा आधुनिक जीवनको सुसंगठित, वैज्ञानिक और उत्पादक शक्तियोंको आध्यात्मिक रंगमें रंगा जा सके?

रेलगाड़ी, आदिकी मैं जो निन्दा करता हूँ वह अपनी जगहपर ठीक है, किन्तु वर्तमान आन्दोलनसे उसका कोई सम्बन्ध नहीं है, और पत्र-लेखकने जिन-जिन चीजों