पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/२२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९९
अमेरिकाके मित्रोंसे

अमेरिकाके व्यक्तिको अपेक्षा आपमें वह चेतना अधिक है, और साथ ही उसे औरों में जाग्रत करनेकी शक्ति भी।

मैं सिर्फ यही आशा कर सकता हूँ कि लेखकका अनुमान सच निकले।

वह आवश्यकता जिसका, भगवान् की दयासे मनुष्यको प्राप्त, सर्वोत्तम उत्तर आपके पास है सारी दुनियाकी आवश्यकता है—यह तो आप स्वीकार करते है न? ऐसी स्थितिमें यदि आप भारतको ही अपना कार्य-क्षेत्र मानते रहें तो आपका कार्य कैसे पूरा हो सकता है? यदि मेरे हाथ या पाँवमें इतनी जीवनी-शक्ति डाल दी जाये जो मेरे शेष शरीरके अनुपातसे बहुत अधिक हो तो क्या इससे मेरा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा या मेरे हाथ-पैरोंके लिए स्थायी स्वास्थ्यको दृष्टिसे भी वह हितकर होगा?

में अच्छी तरह जानता हूँ कि अकेले भारतमें मेरा जीवन-कार्य पूर्ण न होगा। परन्तु, मैं समझता हूँ मुझमें इतनी विनम्रता है कि अपनी सीमाओंको मानता हूँ और यह समझता हूँ कि जबतक खुद भारतवर्ष में मेरे प्रयोगका परिणाम न मालूम हो जाये तबतक मुझे अपने कार्यक्षेत्रको भारतके संकुचित दायरे में ही सीमित रखना चाहिए। जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, मैं भारतवर्षको एक स्वतन्त्र और बलवान् राष्ट्र के रूपमें देखना चाहँगा, जिससे कि वह संसारके हितके लिए स्वेच्छा पूर्वक और शुद्ध न करनेके लिये तैयार रहे। शुद्ध व्यक्ति कुटम्बके लिए, कुटम्ब गाँवके लिए, गाँव जिलेके लिए, जिला प्रान्तके लिए, प्रान्त राष्ट्र के लिए और राष्ट्र सारे मनुष्यसमाजके लिए अपना बलिदान करता है।

आपके सन्देशके प्रति गहरी श्रद्वा रखता हुआ क्या मैं यह भी निवेदन कर सकता हूँ कि अकेले या मुख्यतः भारतवर्षको ध्यानमें रखनेकी अपेक्षा यदि आप सारी दुनियाको अपने सामने रखकर चलें तो उससे शायद खुद आपकी दृष्टि और प्रेरणाको कुछ लाभ हो?

हाँ, मैं मानता हूँ कि इस बातमें बहुत बल है। मेरी पश्चिमयात्राकी बदौलत मुझे और व्यापक दृष्टि तो नहीं मिल सकती, क्योंकि मैंने यह दिखलानेकी चेष्टा की है कि वह वैसे भी व्यापकतम है—पर हाँ, यह सम्भव है कि उस दृष्टिको कार्यान्वित करनेके नये साधन मालूम हो सकें। यदि मुझे इसकी जरूरत है तो ईश्वर इसका रास्ता खोल ही देगा।

क्या सरकारका राजनैतिक स्वरूप भारतवर्षमें अथवा अन्यत्र व्यक्तिके आत्मबल—अर्थात् अपने अन्दर तथा आसपास व्याप्त भागवत तत्वसे जो कुछ सर्वोत्तम प्रेरणा वह ग्रहण कर सकता है, उसकी अभिव्यक्तिके साहस जितना ही महत्त्वपूर्ण है?

व्यक्तिका आत्मबल हमेशा सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु है। राजनैतिक स्वरूप उसी आत्म-बलका एक स्थूल रूप है। किसी देशके औसत आदमीके आत्म-बलमें और उस देशकी सरकार में अटूट सम्बन्ध है —पहली चीज दूसरीसे कोई भिन्न और पृथक् अस्तित्व नहीं रखती। इसलिए मैं मानता हूँ कि लोग वैसी ही सरकारको पाते है जिसके कि