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क्या हिन्दू धर्ममें शैतानकी कल्पना है?

साथ राष्ट्रके लिए थोड़ा श्रम करें। इसके लिए कताईको ही इसलिए चुना गया है कि राष्ट्र के लिए यह बड़ा महत्त्व रखती है और यह काम बहत सीधा-सादा है। गुजरातके विभिन्न जिलोंमें कताई सदस्यताके क्षेत्रमें हुई प्रगतिका विशद विवरण मैंने नहीं दिया है। प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीकी रिपोर्ट में विस्तृत विवरण दिया गया है। कमेटीका संगठन इतना सुसम्पूर्ण और इतना प्रामाणिक है कि जहाँ उससे अगर जनताकी शक्ति ठीक-ठीक प्रकट होती है, वहाँ उसकी कमजोरी भी कभी छिपती नहीं है। आँकड़ोंको तफसीलसे देखनेपर ज्ञात होता है कि जो पाँच सौ चालीस सदस्य अब भी अपना पूरा कोटा दे रहे हैं, वे गुजरातके सभी जिलोंमें फैले हुए नहीं है। वे पाँच सदस्य भी आज नहीं रह जाते। इसलिए अगर स्वेच्छया कताई करनेके कामको सार्वजनीन बनाना है तो सारे भारतमें ऐसे कताई संगठनोंका होना आवश्यक है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १७–९–१९२५
 

१०८. क्या हिन्दू धर्ममें शैतानकी कल्पना है?

एक भाई लिखते हैं :

कुछ महीने पहले आपने एक ऐसे शीर्षकके अन्तर्गत, जो उसमें चचित विषयको देखते हुए ठीक नहीं था, मेरा एक पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें कतिपय धार्मिक विचारसरणियों और ईश्वर के प्रति विश्वासको लेकर कुछ चर्चा की गई थी।[१] अब मैं एक सवाल शैतानके (सामी जातिके विश्वासोंके अनुसार)—ईश्वरके प्रतिद्वंद्वीके—सम्बन्धमें पूछना चाहता है। इसके नामका प्रयोग आप अपने लेखों और भाषणोंमें बार-बार करते हैं। और इस तरह करते हैं कि श्रोताओं और पाठकोंके मनपर ऐसी छाप पड़ती है कि आप सचमुच उसकी सत्तामें विश्वास करते हैं। उदाहरणके लिए आप ६–८–१९२५ के अंकमें प्रकाशित अपना "शैतानका जाल" शीर्षक लेख देख सकते हैं। अगर उसमें आपका उद्देश्य सिर्फ प्रभाव उत्पन्न करना होता तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती, क्योंकि आखिरकार आप उन लोगोंकी भाषामें लिख या बोल रहे थे, जिन्हें सामी धर्मसमुदायमें से ही एक ईसाई धर्मके माध्यमसे यह विश्वास करना सिखाया गया है कि वास्तवमें शैतानका अस्तित्व है। किन्तु, इस लेखसे अन्य बातोंके अलावा यह भी प्रतीत होता है कि आप शैतानके अस्तित्वमें विश्वास करते हैं। मेरी तुच्छ सम्मतिमें तो यह विश्वास हिन्दुधर्मको मान्यताओंके विरुद्ध है। जब अर्जुनने श्रीकृष्णसे पूछा कि मनुष्यका बार-बार पतन क्यों होता है तो
  1. देखिए खण्ड २६, पृष्ठ ५६६–६८।