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११०. भाषण : हजारी बागकी सार्वजनिक सभामें[१]

१८ सितम्बर, १९२५

महात्माजीने मानपत्रोंका उत्तर देते हुए कहा कि इन मानपत्रोंके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, परन्तु उनमें से एक मानपत्रमें जिन दो बातोंका उल्लेख किया गया है, उन्हें सुनकर मुझे दुःख हुआ है। उसमें कहा गया है कि अभी हालतक वहाँके हिन्दुओं और मुसलमानों में परस्पर सद्भाव था, परन्तु अब थोड़ा मनमुटाव हो गया है। इस बातको जानकर मुझे दुःख हुआ है। लेकिन मुझे आशा है कि दोनों जातियोंके नेता मिलकर इस मामलेको सुलझायेंगे। दूसरे आपने मुझे यह बतलाया है कि बिहारियों और बंगालियोंमें भी कुछ ऐसा ही चल रहा है। मैं नहीं जानता इसका क्या कारण है। मैं तो इतना ही जानता है कि यदि आप भारतको स्वतन्त्र कराना चाहते हैं, यदि आप स्वराज्य पाना चाहते हैं, तो आपको यह विचार छोड़ ही देना होगा कि आप बिहारी, बंगालो, गुजराती या मारवाड़ी हैं। आपको तो यही याद रखना होगा कि आप सबसे पहले भारतीय हैं। किसी एक प्रान्तके निवासीको हैसियतसे आपको उसी भावनासे काम करना चाहिए कि आप अपने प्रान्तको पूरे देशको सेवाके लिए तैयार कर रहे हैं। मुझे समझमें नहीं आता कि आप लोगोंमें इस प्रकारको कटुता कैसे आ गई। इसके बारेमें भी मैं वहीं कहता हूँ जो मैंने हिन्दू-मुस्लिम मतभेदके बारेमें कहा है। अपने भाषणके अन्तमें गांधीजी खादी और चरखके विषयमें बोले।

[अंग्रेजीसे]
जगार सर्चलाइट, २०–९–१९२५
 

१११. भाषण : विद्यार्थियोंकी सभामें।[२]

[१८ सिम्बर, १९२५][३]

मेरे पास आप लोगोंके लिए कोई बना बनाया सन्देश नहीं है। जब मैं यहाँ आया तो मुझे इस बातका कोई अनुमान नहीं था कि मुझसे इस सभामें भाषण देनेके लिए कहा जायेगा। फिर भी मैं आप लोगोंके समक्ष समाजसेवाके विषयमें कुछ विचार रखूँगा। कलकत्ताकी एक सभामें मैंने कहा था कि समाज-सेवाके लिए सबसे पहली जरूरत चरित्र-बलकी है, और समाज-सेवा करने के इच्छुक व्यक्तिमें यदि चरित्र

 
  1. इसमें हजारीबागके नागरिकों, जिला बोर्ड तथा नगरपालिकाकी ओरसे गांधीजीको मानपत्र और साथ में तेरह सौ रुपयेकी थैली भेंट की गई थी।
  2. यह सभा हजारीबाग के सेंट कोलम्बस कालेजमें हुई थी ‌
  3. 'बुद्धिप्रकाश' में यही तिथि दी गई है।