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भाषण : विद्यार्थीयोंकी सभामें

नहीं है तो वह समाज-सेवा करने योग्य नहीं है। यद्यपि प्रकटतः मेरा जीवन राजनैतिक संघर्षों में उलझा रहा है, लेकिन जो लोग मुझे जरा भी जानते हैं, वे आपको बता सकते हैं कि मैंने अपना समय मुख्यतः समाज-सेवामें लगाया है। मैं समाज-सेवाका प्रेमी हूँ और अक्सर मैंने इस कार्यका विशेषज्ञ होनेका दावा भी किया है—यदि तीस वर्षकी अटूट सेवाका अनुभव किसीको विशेषज्ञ बना सकता है तो।

अपने जीवनमें मुझे सेवामें रत दर्जन-दो दर्जन या सौ-दो सौ नहीं, बल्कि हजारों भारतीय और यूरोपीय स्त्रियों और पुरुषोंके साथ लम्बे अरसेतक काम करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मेरी नम्र रायमें समाज सेवाके बिना सच्ची राजनीतिक सेवा भी सम्भव नहीं है। समाज सेवाके लिए चरित्रकी अनिवार्य आवश्यकताको मैंने तभी अनुभव कर लिया था जब दक्षिण आफ्रिकामें मैंने समाज सेवाका काम शुरू ही किया था और भारत लौटनेके बाद तो मेरी यह धारणा और पक्की हो गई। दक्षिण आफ्रिकामें समाज-सेवा करना आसान नहीं था, लेकिन वहाँ जो कठिनाइयाँ सामने आती थीं, वे भारतकी कठिनाइयोंके मुकाबले में कुछ नहीं थीं। यहाँ समाज सेवकको अन्धविश्वास, पूर्वग्रह और रूढ़िवादिताकी जिन बाधाओंसे लड़ना पड़ता है उनका परिमाण बहत ज्यादा है। रूढ़िवादितासे कुछ लाभ भी है। रूढिवादी व्यक्ति बुराइयोंसे दूर रहकर सही रास्तेपर चलता है। लेकिन जब रूढ़िवादितामें अज्ञान, पूर्वग्रह और अन्धविश्वास आ मिलते हैं तब वह सर्वथा अवांछनीय हो जाती है। दुर्भाग्यसे भारतमें अपना काम शुरू करते ही समाजसेवकके सामने ये तीनों बुराइयाँ दीवार बनकर आ खड़ी होती हैं। समाज सेवकके लिए यहाँ इतना काम है कि समाज सेवाके इच्छुक स्त्री या पुरुषको यह सोचने की जरूरत नहीं है कि वह क्या काम करे। समाज सेवकके लिए करनेको सैंकड़ों काम पड़े हैं, और यदि वह देखनेकी कोशिश करे तो वे खुद-ब-खुद उसके ध्यानमें आ जायेंगे। हम पूरी सचाईके साथ कह सकते हैं कि यहाँ और जगहोंके मुकाबले समाज-सेवा करनेका मौका बहुत ज्यादा है लेकिन काम करनेवाले ही नहीं है। यह सचमुच आश्चर्यकी बात है कि भारतके कालेजोंमें इतने लम्बे समयसे शिक्षा दी जा रही है, और फिर भी हम देखते हैं कि बहुत व। कम विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करनेके बाद समाज-सेवाका काम करने के लिए आगे आते है।

यह सच है कि समाज-सेवाका काम रोचक और तड़क-भड़कवाला काम नहीं है। उसमें परिश्रम, घोर परिश्रमका करना पड़ता है। यह भी सच है कि उसमें आर्थिक दृष्टिसे कोई आकर्षण नहीं होता। समाज-सेवकको मुश्किलसे गुजारे लायक पैसोंसे ही संतोष करना पड़ता है और कभी तो वह भी नसीब नहीं होता। इस समय भारत-भरमें कितने ही ऐसे युवक है जो समाज सेवाके काममें लगे हुए हैं। इनमें से कुछ तो प्रतिभावान ग्रेजुएट हैं जिनका चरित्र अत्यन्त ऊँचा है। उनमें से कई युवकोंको इतना कम वेतन मिलता है, जिससे केवल पेट ही भरा जा सकता है। परन्तु उन्हें इसका कोई दुःख नहीं है। उन्होंने स्वेच्छासे धनोपार्जनको लुभावनी राहोंको छोड़कर कर्तव्य और सेवाकी कठिन और कंटकाकीर्ण, किन्तु सुन्दर राहपर चलना स्वीकार