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भाषण : विद्यार्थियोंकी सभामें

ऐसे सुरम्य और सुन्दर जलवायुवाले, सब तरहके खनिज पदार्थोंवाले इस प्रदेशमें से इन लोगोंको लाचार होकर असमके चाय-बागानोंमें काम करने जाना पड़ता है। यदि उन्हें इन बागानोंमें जाकर काम करनेकी जरूरत हो तो वे जरूर जायें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन उन्हें ऐसा करनेकी जरूरत नहीं है। इन पिछड़ी हुई जातियोंके बीच सभी नवयुवकोंके लिए काफी काम पड़ा हुआ है। यहाँ आपके लिए इन जातियोंके जीवनके बारेमें अध्ययन और शोधकार्य करनेका विशाल क्षेत्र पड़ा है। अपने इस कामके दौरान आप कई अद्भुत बातें जान सकेंगे। आप हैरतके साथ देखेंगे कि मनुष्यकी हृदयतन्त्रीमें जो तार होते हैं वे इनके हृदयमें भी मौजूद हैं। और जब आप इनमें से कुछ तार छू पायेंगे और देखेंगे कि मानव सहानुभूतिसे वे झंकृत हो उठते हैं तो उससे आपको परिपूर्ण हार्दिक सन्तोष प्राप्त होगा। मैंने बहुधा नवयुवकोंको बताया है कि सर्वत्र उपयोगी समाज-सेवाके लिए उनमें एक चीजका होना आवश्यक है। जब मैं वह चीज बताऊँगा तब आप हँसकर कहेंगे कि यह बूढ़ा चाहे राजनीतिकी बात करे चाहे समाज-सेवाकी, और चाहे आर्थिक कष्ट दूर करनेकी, 'चरखे' का अलाप किये बिना नहीं रहता। हाँ, बात यही है, क्योंकि मैं ऐसा किये बिना रह नहीं सकता। इस बार कलकत्तामें मुझे बहुतसे लोगोंसे मिलनेका सौभाग्य मिला। उनमें से कई मिशनरी थे, कुछ व्यावसायिक संगठनोंमें काम करनेवाले लोग थे। उन सबसे बात करनेके बाद मेरी यह धारणा और भी दृढ़ हुई है कि चरखेके सम्बन्धमें ठीक ज्ञानके बिना हम बड़े पैमानेपर समाज-सेवाका काम नहीं कर सकते। एक राष्ट्र के रूपमें हम जिस रोगसे ग्रस्त है वह है निठल्लापन, जो किसी समय हमपर जबर्दस्ती लादा गया था और अब हमारी आदत ही बन गया है। आलस्यमें अपना समय बितानेवाले राष्ट्रको जीनेका कोई अधिकार नहीं है। मध्यमवर्गके लोग अपनी आजीविकाके लिए आठ घंटे काम करेंगे। पर यह जरूरी नहीं कि आठ घंटे काममें जुटा रहनेवाला व्यक्ति उद्यमी भी हो। उन्हें समयके उपयोगका पता ही नहीं है। मैं इसे भुगत चुका हूँ इसीलिए जानता हूँ। दक्षिण आफ्रिकामें में हजारों मजदूरोंके बीच रहा और जर्जर स्वास्थ्यके बावजूद मैं उनसे ज्यादा काम कर पाता था, क्योंकि मैं उनकी तरह समय नहीं गँवाता था। मेरे एक कलेक्टर मित्रने एक बार मुझे लिखा था—"मुझे आपकी राजनीति बिलकुल नापसन्द है।" उनका अभिप्राय असहयोगसे था, जिसके बारेमें न उन्होंने कुछ पढ़ा था और न उसकी कोई समझ ही उन्हें थी। उन्होंने लिखा, "मुझे आपका चरखा पसन्द है। मैं अंग्रेज हूँ, और इसलिए मुझे भारतकी अर्थ-व्यवस्थाकी कोई समझ नहीं है—लेकिन चरखेके अपने सन्देश द्वारा आपने समाजकी एक बहुत बड़ी सेवा की है, इसलिए आपका यह शौक मुझे पसन्द है।" वैसे यदि सिर्फ शौककी बात होती तब भी मैं चरखेको एक मूल्यवान शौक मानता परन्तु मेरे लिए वह शौकमात्र ही नहीं है। मैं तो उसे एक जीवनदायी चीज मानता हूँ, क्योंकि उसने हजारों स्त्री और पुरुषोंका जीवन ही बिलकुल बदल दिया है। और अगर आप-जैसे शिक्षित लोग मेरा साथ दें, और अंग्रेज भी मेरी बात मान लें तो जिन लाखों चेहरोंपर आज घोर निराशा छाई है, वहाँ मुस्कान थिरकने लगे। आज उनके चेहरोंपर निराशा

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