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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्यों है? इसलिए कि उनके पास काम नहीं है और वे भूखों मरते हैं। भूखसे पीड़ित होनेपर भी वे सरकार द्वारा चलाई गई खर्चीली योजनाओं में काम करने नहीं जा सकते। वहाँ अधिकतर काम है सड़कोंके लिए पत्थर तोड़नेका या लोहा ढोनेका। और आप जानते हैं कि वह काम उन्हें कैसी परिस्थितियों में करना पड़ता है? काम करनेवालोंमें अधिकांश स्त्रियाँ होती हैं और उन्हें ओवरसीयरोंकी देखरेख में काम करना पड़ता है। ये ओवरसीयर लम्पट और सर्वथा चरित्रहीन होते हैं। आगेकी स्त्रियोंको, जिनके प्रति आपके मनमें वैसा ही आदर भाव होना चाहिए जैसा कि अपनी माँ और बहनोंके लिए होता है, इस प्रकारकी मजदूरीसे बचाया जा रहा है। चरखा उनकी सब जरूरतें पूरी कर देता है। साठ वर्षकी एक वृद्ध महिला दो मील चलकर मेरे पुत्रसे पूनियाँ लेने आती है। वह उससे कहती है, "अपने पितासे कहना उन्होंने मुझे जो चीज दी है वह मेरे लिए वरदान है, क्योंकि उससे मुझे जो सम्मान मिला है वह पहले प्राप्त नहीं था।" चम्पारनमें आज लाखों ऐसे स्त्रीि और पुरुष है जिन्हें चरखा स्वावलम्बी बना सकता है। वहाँ स्त्रियोंकी मजदूरी प्रतिदिन ५ या ६ पैसे, लड़कोंकी ३ या ४ पैसे और पुरुषोंकी ८ या १० पैसेसे ज्यादा नहीं है। मुझे बताया गया है कि आज एक भारतीयको औसत वार्षिक आय ५० रुपये है। मुझे पता नहीं है। मुझे तो यह मालूम है कि दादाभाई नौरोजीने हिसाब लगाया था कि यह आय २६ रुपये है। स्वर्गीय लॉर्ड कर्जनने इसे गलत बताया था। उनके हिसाबसे यह आय ३३ रुपये बैठती थी। यदि हम स्वर्गीय लॉर्ड कर्जन द्वारा निर्धारित रकमको ही ठीक मान लें, हालाँकि उसमें टाटा-जैसे लखपतियोंकी करोड़ोंकी आय भी शामिल है, तो भी आप सोचिए कि इन गरीबोंके लिए प्रति मास दो या तीन रुपये ज्यादा कमानेके क्या माने होंगे। और फिर ये रुपये वे किनसे प्राप्त करेंगे? उन उद्धत ओवरसीयरोंसे नहीं जो इन बहनोंका शीलभंग करते हैं और वेतनके तीन रुपये देते समय उसमें से १ रुपया दस्तूरी काट लेते हैं। यह रुपया उन्हें ऐसे चरित्रवान नवयुवकोंकी देखरेखमें काम करते हए प्राप्त होगा जो उनके सम्मानको अपनी बहनोंके सम्मानकी तरह पुनीत मानेगे और सहर्ष उन्हें पसे देंगे। आठ या दस आने अपमानके साथ प्राप्त होनेकी अपेक्षा श्रेष्ठ कार्यमें लगे व्यक्तियोंसे ४ पैसे ही पा लेना हजार दर्जे अच्छा है।

यही चरखेकी महत्ता है। समाज सेवाके लिए और भी क्षेत्र है। परन्तु उनके बारेमें बात करने के लिए न तो मेरे पास समय है और न शक्ति। यदि आपमें से कुछ लोग उत्साहपूर्वक ऐसी निःस्वार्थ समाज सेवा करेंगे तो उसके लिए आपको कोई वाह्वाही या रुपया पैसा नहीं मिलनेवाला, न कोई आपको महात्मा ही मानेगा। ये सब आपके भाग्यमें नहीं होंगे। परन्तु उसके बजाय आपको धन-दौलतसे भी ज्यादा बहुमूल्य उपहार—गरीबोंका आशीर्वाद —प्राप्त होगा। वैसा आशीर्वाद आपको तब प्राप्त होता है जब ईश्वर कहता है, 'मेरे सच्चे सेवक, तूने बहुत अच्छा काम किया है। मैं तेरे कामसे बहुत खुश हूँ।' उसके लाखों मूक बन्दोंकी सेवा करते