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हुए आप अपने विधातासे निकटतम सम्बन्ध स्थापित कर सकेंगे। इससेअधिक श्रेष्ठ जीवन-लक्ष्य क्या हो सकता है? यही सबसे महान ध्येय है। ईश्वर करे आप इसी पथपर चलें।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, २७–९–१९२५
 

११२. टिप्पणियाँ
नामका दुरुपयोग

अहमदाबादके चायके एक व्यापारीने जो बहुत विज्ञापन-बाजी करता है, मेरे नामका उपयोग इस तरह किया है कि मानो मैंने उसके व्यापारको प्रोत्साहन दिया हो, अथवा मैं चायको पसन्द ही करता हूँ। इस सिलसिलेमें मुझे चार-पाँच शिकायती खत मिले हैं। उस व्यापारीका नाम-ठाम देकर मैं उसकी चायका अधिक विज्ञापन नहीं करना चाहता। सिर्फ इतना ही लिख देना काफी है कि मैंने सारे हिन्दुस्तानमें किसी चायवालेको उसकी चायके लिए प्रमाण-पत्र नहीं दिया। अनेक वर्षोंसे मैंने चाय नहीं पी। मैं नहीं मानता कि मनुष्यके शरीरके लिए चायकी आवश्यकता है। उबालकर बनाई गई चाय तो हानिकर हो जाती है। चाय पीनेसे दूधकी बचत होती है, पर मैं समझता हूँ कि उससे बहुत हानि हुई है। चायके बगीचोंमें मजदूरोंको बहुत तकलीफें उठानी पड़ती है। इससे भी चाय मुझे नापसन्द है। जिसे चायकी लत पड़ जाती है वह उसके बिना परेशान हो जाता है। इसलिए ऐसे दुर्व्यसनको तो छोड़ देना ही अच्छा है। जिन्हें जेल-यात्रा करनी हो उन्हें तो चायसे बचना ही चाहिए। जेलमें चाय नहीं दी जाती। इसलिए चायके विज्ञापनमें मेरे नामका इस प्रकार उपयोग अनचित है और इससे मुझे दुःख होता है। अतएव जो सज्जन मेरे नामका उपयोग कर रहे हैं वे अपने विज्ञापनोंसे मेरा नाम निकाल डालें।

वैसे मेरे नामके दुरुपयोगकी कहानी तो लम्बी है। मेरे नामपर मनुष्योंका वध हुआ है, मेरे नामपर असत्यका प्रचार हुआ है, चुनावोंके समय मेरे नामका दुरुपयोग किया गया है। मेरे नामपर बीड़ियाँ बची जाती है, जिनका मैं विरोधी हैं और मेरे नामपर दवाइयाँ बेची जाती हैं। इस तरह जहाँ आसमान ही फट पड़ा हो वहाँ पैबन्द किस तरह लगाया जाये?

एक अंग्रेज लेखकने कहा है कि जहाँ भूखोंकी या अज्ञानियोंकी संख्या अधिक होती है वहाँ धूर्त और धोखेबाज भूखों नहीं मरते। इस सत्यका अनुभव किसे न हुआ होगा? मैं तो पुकार-पुकारकर कह चुका हूँ कि मेरे नामके उपयोगसे कोई धोखेमें न आये। हर चीजके गुण-दोषका विचार स्वतन्त्रतापूर्वक करे। जहाँ किसीको मेरे प्रमाणपत्रकी आवश्यकता जान पड़े और जरा भी शक पैदा हो वहीं मुझसे पूछकर इत्मीनान कर लेना अति आवश्यक है।