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ईश्वर-भजन

लिए जो सीधे तरीकेसे ईश्वरको भजना चाहता हो उसे अपने हृदयकी शुद्धि कर लेनी चाहिए। हनुमानकी जीभपर जो राम था वही उनके हृदयका स्वामी था और इसीसे उनमें अपरिमित बल था। विश्वाससे जहाज चलते हैं, विश्वाससे पर्वत उठाया जा सकता है और समुद्र लाँघा जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि जिसके हृदयमें सर्व-शक्तिमान ईश्वरका निवास है वह क्या नहीं कर सकता? फिर भले ही वह कोढ़ी हो, या क्षयका रोगी। जिसके हृदयमें राम बसते हैं उसके सब रोग सर्वथा नष्ट हो जाते हैं।

ऐसा हृदय किस प्रकार बन सकता है? यह सवाल प्रश्नकर्त्ताने नहीं पूछा है। परन्तु मेरे जवाबमें से यह प्रश्न निकलता है। मुँहसे बोलना तो हमें कोई भी सिखा सकता है : पर हृदयकी वाणी कौन सिखा सकता है? यह तो भक्त-जन ही कर सकते हैं! भक्त किसे कहें? 'गीताजी' में तीन जगह खास तौरपर और सब जगह आम तौरपर इसका विवेचन किया गया है। परन्तु उसकी संज्ञा या व्याख्या मालम हो जानेसे भक्त-जन मिल नहीं जाते। इस जमानेमें यह दुर्लभ है। इसीसे मैंने तो सेवा-धर्म पेश किया है। जो औरोंकी सेवा करता है उसके हृदयमें ईश्वर अपने आप, खुद अपनी गरजसे रहता है। इसीसे अनुभव-ज्ञान-प्राप्त नरसिंह मेहताने गाया है—

"वैष्णव जन तो तेने कहीए जे पीड पराई जाणे रे"

और पीड़ित कौन है? अन्त्यज और कंगाल। इन दोनोंकी सेवा तन, मन, धनसे करनी चाहिए। जो अन्त्यजको अछूत मानता है वह उसकी सेवा तनसे क्या करेगा? जो कंगालके लिए चरखा चलाने जितना भी शरीर हिलाने में आलस्य करता हैं, अनेक बहाने बनाता है, वह सेवाका मर्म नहीं जानता। कंगाल यदि अपंग हो तो उसे सदावर्त दिया जा सकता है? पर जिसके हाथ-पाँव है उसे बिना मेहनतके भोजन देना मानो उसको नीचे गिराना है। जो मनुष्य कंगाल के सामने बैठकर चरखा चलाता है और उसे चरखा चलाने के लिए बुलाता है वह ईश्वरकी अनन्य सेवा करता है। भगवानने कहा है, "जो मुझे पत्र, पुष्प, जल, इत्यादि भक्तिपूर्वक अर्पित करता है वह मेरा सेवक है।" भगवान कंगालके घर अधिक रहते हैं, यह तो हम निरन्तर सिद्ध हुआ देखते हैं। इसीसे कंगालके लिए कातना महाप्रार्थना है, महायज्ञ है, महासेवा है।

अब प्रश्नकर्ताकी बातका जवाब देना आसान हो गया। ईश्वरकी प्रार्थना किसी भी नामसे की जा सकती है। उसकी सच्ची रीति है हृदयसे प्रार्थना करना। हृदयकी प्रार्थना सीखनेका मार्ग सेवाधर्म है। इस युगमें जो हिन्दू अन्त्यजकी सेवा हृदयसे करता। है वह शुद्ध प्रार्थना करता है। हिन्दू तथा हिन्दुस्तानके अन्य धर्मावलम्बी भी जो गरीबोंके लिए हृदयसे चरखा चलाते है, सेवाधर्मका पालन करते है और हृदयसे प्रार्थना करते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २०–९–१९२५