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११६. पत्र : महादेव देसाईको

पटना
रविवार [२० सितम्बर, १९२५][१]

चि॰ महादेव,

तुम अन्य नियमोंका पालन करो या न करो, ठीक पता पास न हो तो भी, पत्र तो मुझे सूलीपर झूलते हुए भी लिखो। तुम्हारी यह भक्ति फल लायेगी। मुझे भी लिखनेकी इच्छा इसी कारण होती है लेकिन मैं तो पूज्य ठहरा। पुजारी होऊँ तब तो लिखूँ। पूज्य तो अनेक अधोगतिको प्राप्त हुए होंगे, लेकिन पुजारी असंख्य तर गये हैं। कृष्णके नामसे अनेकोंने मोक्ष प्राप्त किया, लेकिन बेचारा 'महाभारत' वाला कृष्ण तो बेमौत ही चल बसा और उसके मुँहपर कोई कृष्णका नाम थोड़े ही था। अब कहो कि पूज्य बड़ा है कि पुजारी।

तुम बीमार पड़ोगे, यह तो मैंने सोच ही लिया था। अबतक तो बिलकुल अच्छे हो चुके होगे। कल तुम्हें लगभग १२ कालम सामग्री भेजी थी। आज और भेजनेकी तजवीज करूँगा।

तुम निश्चिन्त होकर वहाँ रहना। दुर्गाको सम्पूर्ण सन्तोष देना। एक शर्त माननी ही होगी; खाट तुम्हें कदापि नहीं पकड़नी चाहिए।

मौलाना शौकत अली आज ही पहुँचे हैं। कल जवाहर आदि आ रहे हैं।

उर्मिला देवीका पत्र मजेके खयालसे तुम्हें भेज रहा हूँ। 'इंडियन ओपिनियन' की फाइल देवदाससे मँगवाई थी। अभी मिली नहीं है।

राजगोपालाचारीको पत्र लिखते रहना। वे इन दिनों सुखी भी है और दुःखी भी।

यहाँ मेरे ठहरनेका प्रबन्ध बहुत ही अच्छी जगह किया गया है। यह मकान ठीक गंगाके किनारे है। मैं जहाँ बैठा है ठीक उसके सामने गंगा बह रही है। तुम्हारा पत्र तड़के ही लिख रहा हूँ। शान्ति अवर्णनीय है। कल राजेन्द्रबाबूने मुझे बिलकुल थका दिया था; आज उसका बदला दे दिया है।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :]

यात्राका कार्यक्रम मुझे नहीं मालूम, लेकिन आज तुम्हें भेज देनेके लिए कह दूँगा। देखता है, अपनी आदतके मताबिक मैंने उर्मिला देवीके पत्रको फाड़ फेंका है।

देवधरका मामला में पेरीन बहनको[२] सौंप आया हूँ। देवधर मुझे नहीं मिला। डाह्याभाईके बारेमें तो वल्लभभाई निश्चित करनेवाले थे। मैं पेरीन बहनको लिख

  1. इस तारीखको गांधीजी पटनामें थे।
  2. दाद भाई नौरोजीकी पौत्री।