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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पर दूँगा। सदस्यताकी शर्तमें संशोधन करना तथा पिछले साल किये गये समझौतेको[१] रद करना, ये दोनों प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। हमें चाहिए कि इसमें जो कठिनाइयाँ हैं उनपर हम स्वतन्त्रताके साथ निःसंकोच भावसे लेकिन शान्तिपूर्वक विचार करें और उन्हें सुलझायें, ताकि कानपुर अधिवेशनके समय अपने राष्ट्रीय कार्यक्रममें हम ऐसे परिवर्तन करने के लिए तैयार रहें जिनसे स्वराज्य जल्दी प्राप्त करने में मदद मिले। यदि आपका विचार हो कि यह प्रश्न कांग्रेसको ही तय करना चाहिए तो आप ऐसा कहने में संकोच न करें। इसके विपरीत यदि आपको ऐसा लगता है कि हमें कांग्रेसके लिए रास्ता साफ कर देना चाहिए तो आप वैसा ही कहें। सबसे पहले तो हमें यही तय करना है कि क्या यह प्रश्न इतना महत्त्वपूर्ण है कि अ॰ भा॰ कां॰ कमेटी उसपर तुरन्त विचार और निर्णय करे। मैं आपसे फिर यह अनुरोध करता हूँ कि आप पूरी तरह अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस प्रश्नपर विचार करें।[२]

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, २५-९-१९२५
 

११९. भाषण : अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीको बैठक, पटनामें[३]

२२ सितम्बर, १९२५

महात्मा गांधीने कहा कि आपको मेरा या मेरी रायका विचार किये बिना वोट देना चाहिए। यदि आपको सदस्यताके लिए सूत देने की शर्त पसन्द नहीं है तो आप उसे बिलकूल अस्वीकार कर दें। यदि आपको खद्दरका प्रयोग करनका सुझाव पसन्द नहीं है तो आप उतनी ही स्वतन्त्रतापूर्वक उसे भी अस्वीकार कर सकते हैं। मैं चाहता हूँ कि आप प्रस्तावित चरखा संघसे सम्बन्धित धाराके फलितार्थोंको देखसमझ कर वोट दें। स्मरण रहे कि इस नये संघपर कांग्रेसका कोई नियन्त्रण नहीं

 
  1. गांधीजी और स्वराज्य दलके बीच हुआ समझौता। इसके अनुसार कांग्रेसको सिर्फ कुछ निश्चित कार्योंमें लगना था और स्वराज्य दलको कांग्रेसके एक अभीन्न अंगके तौरपर केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान मण्डलोंमें काम करना था।
  2. बादमें हुई बहसमें सिन्धके आर॰ के॰ सिंधवाने आपत्ति की कि अ॰ भ॰ कां॰ कमेटी संविधानमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकती। यह काम सिर्फ कांग्रेसका है। मोतीलाल नेहरूका मत था कि कमेटीको ऐसा करनेका अधिकार है। श्रीनिवास आंथगारने कहा कि संविधान कोई वेद-वाक्य तो नहीं है। देशकी दशा जिनसे सुधरे, ऐसे परिवर्तनोंको स्वीकार किया जाना चाहिए। जे॰ एम॰ सेनगुप्तकी सिकायत थी कि सदस्यताकी वर्तमान शर्त काममें बाधा डालती है। पण्डित मालवीने कहा, "मैं चाहता हूँ नई शर्तोंके अनुसार फिर से चुनाव हो।" गांधीजी द्वारा प्रस्तावपर वोट लेनेपर ९३ सदस्योंने संविधानमें परिवर्तनके पक्षमें और ७ सदस्योंने उसके विरुद्ध में मत दिया। मोतीलाल नेहरूने तब "नया मताधिकार" प्रस्ताव पेश किया।
  3. यह भाषण संविधान संशोधनके प्रस्तावके सम्बन्धमें हो रही बहस के दौरान दिया गया था।